Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ४ : सू. १५७-१६९ ३. कोई अनगार वृक्ष के अन्तर्वर्ती भाग को भी देखता है, बहिर्वर्ती भाग को भी देखता है। ४. कोई अनगार न वृक्ष के अन्तर्वर्ती भाग को देखता है और न ही बहिर्वर्ती भाग को देखता है। १५८. भन्ते! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के मूल को देखता है? कन्द को देखता है? गौतम! कोई अनगार वृक्ष के मूल को देखता है, कन्द को नहीं देखता। २. कोई अनगार वृक्ष के कन्द को देखता है, मूल को नहीं देखता। ३. कोई अनगार वृक्ष के मूल को भी देखता है, कन्द को भी देखता है। ४. कोई अनगार न वृक्ष के मूल को देखता है और न कन्द को देखता है। १५९. क्या मूल को देखता है? स्कन्ध को देखता है? यहां भी चार भंग वक्तव्य हैं। १६०. इसी प्रकार मूल के साथ (यावत्) बीज का संयोग करने पर प्रत्येक के चार-चार भंग
होते हैं। १६१. इसी प्रकार कन्द के साथ भी यावत् बीज का संयोग करने पर प्रत्येक के चार-चार भंग
होते हैं। १६२. इसी प्रकार यावत् पुष्प के साथ बीज का संयोग करने पर प्रत्येक के चार-चार भंग होते
१६३. भन्ते! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के फल को देखता है? बीज को देखता है? यहां
भी चार भंग वक्तव्य हैं। १६४. भन्ते! क्या वायुकाय एक महान् स्त्री-रूप, पुरुष-रूप, (अश्व-रूप), हस्ति-रूप, यान-रूप, युग्य-रूप, अम्बाबाड़ी(हाथी का हौदा)-रूप, बग्घी-रूप, शिबिका-रूप अथवा स्यन्दमानिका-रूप का निर्माण करने में समर्थ है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। वायुकाय विक्रिया करता हुआ एक महापताका के आकार वाले रूप की विक्रिया करता है। १६५. भंते! क्या वायुकाय एक महापताका के आकार वाले रूप की विक्रिया कर अनेक योजन तक जाने में समर्थ है ?
हां, समर्थ है। १६६. भन्ते! क्या वायुकाय अपनी ऋद्धि से जाता है अथवा पर-ऋद्धि से जाता है?
गौतम! वह अपनी ऋद्धि से जाता है, पर-ऋद्धि से नहीं जाता। १६७. भन्ते! क्या वायुकाय अपनी क्रिया से जाता है? परक्रिया से जाता है?
गौतम! वह अपनी क्रिया से जाता है, परक्रिया से नहीं जाता। १६८. भन्ते! क्या वायुकाय अपने प्रयोग से जाता है? पर-प्रयोग से जाता है?
गौतम! वह अपने प्रयोग से जाता है, पर-प्रयोग से नहीं जाता। १६९. भन्ते! क्या वायुकाय ऊपर उठी हुइ पताका के रूप में जाता है अथवा नीचे गिरी हुई
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