Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३ : उ. ४ : सू. १६९-१८०
भगवती सूत्र
पताका के रूप में जाता है? गौतम! वह ऊपर उठी हुई पताका के रूप में भी जाता है और नीचे गिरी हुई पताका के रूप में भी जाता है। १७०. भन्ते! क्या वायुकाय एक दिशा में पताका के आकार में जाता है अथवा दो दिशाओं में पताका के आकार में जाता है? गौतम! वह एक दिशा में पताका के आकार में जाता है, दो दिशाओं में पताका के आकार में नहीं जाता। १७१. भन्ते! क्या वह वायुकाय है अथवा पताका है?
गौतम! वह वायुकाय है, पताका नहीं है। बलाहक-पद १७२. भन्ते! क्या मेघ एक महान् स्त्री-रूप यावत् स्यन्दमानिका-रूप में परिणत होने पर समर्थ
हां, समर्थ है। १७३. भन्ते! क्या मेघ एक महान् स्त्री-रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जाने में समर्थ
हां, समर्थ है। १७४. भन्ते! क्या मेघ अपनी ऋद्धि से जाता है अथवा पर-ऋद्धि से जाता है?
गौतम! वह अपनी ऋद्धि से नहीं जाता, पर-ऋद्धि से जाता है। १७५. भन्ते! क्या मेघ अपनी क्रिया से जाता है? परक्रिया से जाता है?
गौतम! वह अपनी क्रिया से नहीं जाता, परिक्रिया से जाता है। १७६. भन्ते! क्या मेघ अपने प्रयोग से जाता है? पर-प्रयोग से जाता है?
गौतम! वह अपने प्रयोग से नहीं जाता, पर-प्रयोग से जाता है। १७७. भन्ते! क्या मेघ ऊपर उठी हुई पताका के रूप में जाता है अथवा नीचे गिरी हुई पताका
के रूप में जाता है? गौतम! वह ऊपर उठी हुई पताका के रूप में भी जाता है और नीचे गिरी हुई पताका के रूप में भी जाता है। १७८. भन्ते! क्या वह मेघ है अथवा स्त्री है?
गौतम! वह मेघ है, स्त्री नहीं है। १७९. इसी प्रकार मेघ के साथ पुरुष, अश्व और हस्ती की वक्तव्यता। १८०. भन्ते! क्या मेघ एक महान् यान-रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जाने में समर्थ
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