Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. १ : सू. १७-२०
सामानिक परिषद में उपपन्न देव पांच पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त हुए उस तिष्यक देव को देनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुटवाली दस-नखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर, मस्तक पर टिकाकर, जय-विजय ध्वनि से वर्धापित करते हैं, वर्धापित कर इस प्रकार कहा - अहो ! आपने जैसी दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाव उपलब्ध किया है, प्राप्त किया है और वह भोग्य अवस्था में आया है, वैसी दिव्य देवर्द्धि देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध की है, प्राप्त की है यावत् वह भोग्य अवस्था में है । जैसे दिव्य देवर्द्धि देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध की है यावत् भोग्य अवस्था में आई है वैसी दिव्य देवर्द्धि आपने भी भलीभांति उपलब्ध की है यावत् वह भोग्य अवस्था में आई है ।
भन्ते ! वह तिष्यक देव कितनी महान् ऋद्धि वाला यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ है ?
गौतम ! वह महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् समर्थ्य वाला है । वह वहां पर अपने विमान, चार हजार सामानिक देव, चार सपरिवार पटरानियां तीन परिषद्, सात सेनाएं, सात सेनापति, सोलह हजार आत्मरक्षक - देव और अन्य अनेक वैमानिक देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ रहता है । वह इतनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने
समर्थ है। जैसे कोई युवक युवती का प्रगाढ़ता से हाथ पकड़ता है, जैसी शक्र की वक्तव्यता है वही वक्तव्यता यहां जाननी चाहिए। गौतम ! तिष्यक देव की विक्रिया शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है । तिष्यक ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा।
१८. भन्ते ! यदि तिष्यक- देव महान् ऋद्धि वाला यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, तो भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के शेष सामानिक देव कितनी महान् ऋद्धि वाले हैं! यह समग्र प्रकरण पूर्ववत् वक्तव्य है यावत् गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र के एक-एक सामानिक देव की विक्रिया-शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से ही प्रतिपादित है। किसी भी देव ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा।
तावत्त्रिंशक, लोकपाल और अग्रमहिषी की वक्तव्यता चमर की भांति ज्ञातव्य है । केवल इतना अन्तर है कि ये दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीपों को अपने रूपों से आकीर्ण कर सकते हैं। शेष वक्तव्यता उसी प्रकार है ।
१९. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है। इस प्रकार द्वितीय गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
२०.
भन्ते ! इस संबोधन से संबोधित कर तृतीय गौतम भगवान् वायुभूति अनगार भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर उन्होंने इस प्रकार कहा - भन्ते ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र महान् ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है तो भन्ते ! देवेन्द्र देवराज ईशान कितनी महान् ऋद्धि वाला है? यह समग्र प्रकरण पूर्ववत् वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है - वह अपनी विक्रिया से कुछ अधिक सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप द्वीपों को आकीर्ण कर सकता है। शेष वक्तव्यता उसी प्रकार है ।
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