Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २ : उ. १ : सू. ४३-४६ युक्त और श्री से अतीव-अतीव उपशोभमान शरीर को देखता है, देखकर हष्ट-तुष्ट चित्त वाला, आनन्दित, नन्दित, प्रीतिपूर्ण मन वाला, परम सौमनस्य-युक्त और हर्ष से विकस्वर हृदय वाला हो गया। जहां श्रमण भगवान महावीर हैं, वहां वह आता है, आकर श्रमण भगवान् महावीर को दांई ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा करता है, वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर न अति निकट, न अति दूर शुश्रूषा और नमस्कार की मुद्रा में उनके सम्मुख सविनय बद्धाञ्जलि होकर पर्युपासना करता है। ४४. 'हे स्कन्दक!' इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक से इस प्रकार कहा-स्कन्दक! श्रावस्ती नगरी में वैशालिक-श्रावक पिंगल निर्ग्रन्थ ने तुमसे यह प्रश्न पूछा-मागध! १. क्या लोक सान्त है अथवा अनन्त है? २. जीव सान्त है अथवा अनन्त है? ३. सिद्धि सान्त है अथवा अनन्त है? ४. सिद्ध सान्त है अथवा अनन्त है? ५. किस मरण से मरता हुआ जीव बढ़ता है अथवा घटता है? इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने वह सारी बातें कहीं यावत् तुम मेरे पास आ गए। स्कन्दक! क्या यह अर्थ संगत है?
हां, है। ४५. स्कन्दक! तुम्हारे मन में जो इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ क्या लोक सान्त है अथवा अनन्त है? उसका भी यह अर्थ हैस्कन्दक! मैंने लोक चार प्रकार का बतलाया है, जैसे-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः और भावतः। द्रव्यतः लोक एक और सान्त है। क्षेत्रतः लोक असंख्येय कोटाकोटि योजन लम्बा-चौड़ा और असंख्येय कोटाकोटि योजन परिधि वाला प्रज्ञप्त है और वह अन्त-सहित है। कालतः लोक कभी नहीं था, कभी नहीं है और कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है वह था, है
और होगा वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित, नित्य है और उसका अन्त नहीं है, वह अनन्त है। भावतः लोक में अनन्त वर्ण-पर्यव, अनन्त गन्ध-पर्यव, अनन्त रस-पर्यव, अनन्त स्पर्शपर्यव, अनन्त संस्थान-पर्यव, अनन्त गुरुलघु-पर्यव, अनन्त अगुरुलघु-पर्यव हैं और उसका अन्त नहीं है, वह अनन्त है। स्कन्दक! इसलिए द्रव्यतः लोक सान्त है, क्षेत्रतः लोक सान्त है, कालतः लोक अनन्त है, भावतः लोक अनन्त है। ४६. स्कन्दक! तुम्हारे मन में जो इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यामक, अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ
क्या जीव सान्त है अथवा अनन्त है? उसका भी यह अर्थ है-स्कन्दक! मैंने जीव चार प्रकार का बतलाया है, जैसे-द्रव्यतः, क्षेत्रतः,
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