Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २: उ. ८, १० : सू. ११९-१२५ है । उसकी आकृति श्रेष्ठ वज्र जैसी है, वह महामुकुन्द नामक वाद्य के संस्थान से संस्थित है, सर्वरत्नमय है । वह स्वच्छ, सूक्ष्म, चिकना, स्निग्ध, घुटा हुआ, प्रमार्जित, रज-रहित, निर्मल, निष्पङ्क, निरावरण दीप्ति वाला तथा प्रभा, मरीचि और उद्योतयुक्त है । द्रष्टा के चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय, और रमणीय है । वह एक पद्मवरवेदिका और वृक्षनिकुंज से चारों ओर से घिरा हुआ है । पद्मवरवेदिका और वृक्ष - निकुञ्जों का वर्णन । १२०. उस बहुसमरमणीय भूभाग के प्रायः मध्यदेशभाग में एक महान् प्रासादावतंसक प्रज्ञप्त है - उसकी ऊंचाई दो सौ पचास योजन है और चौड़ाई एक सौ पच्चीस योजन है । प्रासाद का वर्णन | चंदोवा के उपर की भूमि का वर्णन । मणिपीठिका आठ योजन की है। चमर का सिंहासन उसके परिवार के सिंहासनों सहित वक्तव्य है ।
१२१. उस तिगिच्छिकूट उत्पातपर्वत के दक्षिण भाग में अरुणोदय समुद्र में छह अरब, पचपन करोड़, पैंतीस लाख और पचास हजार योजन तिरछा चले जाने पर तथा नीचे की ओर रत्नप्रभा पृथ्वी का चालीस हजार योजन अवगाहन करने पर असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की चमरचञ्च नामक राजधानी प्रज्ञप्त है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई एक लाख योजन है । वह जम्बूद्वीप- प्रमाण है ।
उसकी पीठिका लम्बाई-चौड़ाई में सोलह हजार योजन और परिधि में पचास हजार पांच सौ सितानवे योजन से कुछ कम है । उसका सर्व प्रमाण वैमानिक- देवों की राजधानी के प्रकार आदि से आधा जानना चाहिए।
नव उद्देशक
समय क्षेत्र पद
१२२. भन्ते ! समय-क्षेत्र किसे कहा जाता है ?
गौतम ! अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र - यह इतना क्षेत्र समय-क्षेत्र कहलाता है ।
१२३. इनमें जम्बूद्वीप नामक द्वीप सब द्वीपों और समुद्रों के मध्य में है । इस प्रकार आभ्यन्तर पुष्करार्ध तक जीवाजीविभिगम की वक्तव्यता ज्ञातव्य है । उसमें से केवल ज्योतिष्क देवों की वक्तव्यता छोड़ देनी है ।
दसवां उद्देशक
अस्तिकाय-पद
१२४. भन्ते ! अस्तिकाय कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! अस्तिकाय पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय ।
१२५. भन्ते ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण हैं? कितने गन्ध हैं? कितने रस हैं? कितने स्पर्श हैं ? गौतम ! वह अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श; अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है ।
वह संक्षेप में पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- द्रव्य की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल
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