Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. १ : सू. ४,५
होती है, उसी प्रकार गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर (अपनी विक्रिया से निर्मित एवं अपनी शरीर से प्रतिबद्ध रूपों से जम्बूद्वीप को आकीर्ण करने के लिए) वैक्रिय-समुद्घात से समवहत होता है। समवहत होकर वह अपने शरीर से संख्येय योजन लम्बा दंड निकालता है। उसके पश्चात् वह रत्न, वज्र (हीरा), वैडूर्य (लसुनिया), लोहिताक्ष (लोहितक), मसारगल्ल (मसृणपाषाणमणि), हसंगर्भ (पुष्पराग), पुलक, सौगन्धिक (माणिक्य), ज्योतिरस (सफेद
और लाल रंग से मिश्रित मणि), अञ्जन (समीरक), अञ्जनपुलक, चांदी, स्वर्ण, अंक, स्फटिक और रिष्ट नामक मणि-इन रत्नों से स्थूल (असार) पुद्गलों को झटक देता है और सूक्ष्म (सार) पुद्गलों को ग्रहण करता है। उन्हें ग्रहण कर, वह फिर दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है। गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को अनेक असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत (बिछौना-सा बिछाया हुआ), संस्तृत (भलीभांति बिछौना-सा बिछाया हुआ), स्पृष्ट (छूने) और अवगाढावगाढ (अत्यन्त सघन रूप से व्याप्त) करने में समर्थ है।
और दूसरी बात, गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर तिरछे लोक के असंख्य द्वीप-समुद्रों को अनेक असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत, संस्तृत, स्पृष्ट और अवगाढावगाढ करने में समर्थ है। गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर की विक्रिया-शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है। चमर ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है
और न करेगा। ५. भन्ते! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, तो भन्ते! असुरेन्द्र असुराज चमर के सामानिक देव कितनी महान् ऋद्धि वाले यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ हैं? गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव महान् ऋद्धि वाले, महान् द्युति वाले, महाबली, महायशस्वी, महासुखी और महान् सामर्थ्य वाले हैं। वे वहां पर अपने-अपने भवनों का, अपने-अपने सामानिक देवों का और अपनी-अपनी पटरानियों का आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोगार्ह भोग भोगते हुए रहते हैं। वे इतनी महान् ऋद्धि वाले हैं यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ हैं। जैसे कोई युवक युवती का प्रगाढ़ता से हाथ पकड़ता है अथवा गाड़ी के चक्के की नाभि जैसे अरों से युक्त होती है उसी प्रकार गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामनिक देव वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है यावत् दूसरी बार फिर वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है। गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक देव सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को अनेक असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत, संस्तृत, स्पृष्ट और अवगाढावगाढ करने में समर्थ हैं। और दूसरी बात, गौतम! असुरेन्द्र असरराज चमर का प्रत्येक सामानिक देव तिर्यक्-लोक के