Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २ : उ. १० : सू. १३६-१३९ (आत्म-प्रवृति) से जीव-भाव (जीव होने) को प्रकट करता है क्या यह कहा जा सकता है? हां, गौतम! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से युक्त जीव अपने आत्म-भाव से जीव-भाव को प्रकट करता है यह कहा जा सकता है। .. १३७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकारपराक्रम से युक्त जीव अपने आत्म-भाव से जीवभाव को प्रकट करता है यह कहा जा सकता
गौतम! जीव आभिनिबोधिक-ज्ञान के अनन्त पर्यवों, श्रुत-ज्ञान के अनन्त पर्यवों, अवधि-ज्ञान के अनन्त पर्यवों, मनःपर्यव-ज्ञान के अनन्त पर्यवों, केवलज्ञान के अनन्त पर्यवों, मति-अज्ञान के अनन्त पर्यवों, श्रुत-अज्ञान के अनंत पर्यवों, विभङ्ग-ज्ञान के अनन्त पर्यवों, चक्षु-दर्शन के अनन्त पर्यवों, अचक्षु-दर्शन के अनन्त पर्यवों, अवधि-दर्शन के अनन्त पर्यवों और केवल-दर्शन के अनन्त पर्यवों के उपयोग को प्राप्त होता है। जीव उपयोग-लक्षण वाला है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से युक्त जीव अपने आत्म-भाव से जीव-भाव को प्रकट करता है यह कहा जा सकता है। आकाश-पद १३८. आकाश कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? ।
गौतम! आकाश दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे लोकाकाश और अलोकाकाश । १३९. भन्ते! लोकाकाश क्या जीव है? जीव का देश है? जीव का प्रदेश है? अजीव है?
अजीव का देश है? अजीव का प्रदेश है? गौतम! लोकाकाश जीव भी है, जीव का देश भी है, जीव का प्रदेश भी है, अजीव भी है, अजीव का देश भी है और अजीव का प्रदेश भी है। जो जीव हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय
जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों का देश हैं, द्वीन्द्रिय जीवों के देश हैं, त्रीन्द्रिय जीवों के देश हैं, चतुरिन्द्रिय जीवों के देश हैं, पञ्चेन्द्रिय जीवों के देश हैं और अनिन्द्रिय जीवों के देश हैं। जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों का प्रदेश हैं, द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, त्रीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, चतुरिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, पञ्चेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं। जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रूपी और अरूपी। जो रूपी हैं, वे चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे स्कन्ध, स्कन्ध के देश, स्कन्ध के प्रदेश और परमाणु-पुद्गल।
जो अरूपी हैं, वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश नहीं होता, धर्मास्तिकाय के प्रदेश; अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश नहीं होता,
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