Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २ : उ. ५ : सू. ११०,१११
नीच और मध्यम कुलों में सामुदानिक भिक्षा के लिए घूमता हुआ अनेक व्यक्तियों से ये शब्द सुनता हूं-देवानुप्रिय ! तुंगिका नगरी के बाहर पुष्पवतिक चैत्य में पाश्र्वापत्यीय भगवान् स्थविरों से श्रमणोपासकों ने ये इस प्रकार के प्रश्न पूछे भन्ते ! संयम का फल क्या है ? तप का फल क्या है ?
इस प्रकार यावत् यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता के कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है। भन्ते ! क्या वे भगवान स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं ? अथवा असमर्थ हैं ? वे भगवान स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में योग्य हैं ? अथवा अयोग्य हैं ? वे भगवान स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में दायित्वपूर्ण हैं? अथवा दायित्वपूर्ण नहीं हैं? वे भगवान स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने विशिष्ट दायित्वपूर्ण हैं? अथवा विशिष्ट दायित्वपूर्ण नहीं हैं ? - आर्यो ! पूर्वकृत तप से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं। आर्यो ! पूर्वकृत संयम, कर्म की सत्ता और आसक्ति के कारण देव देवलोक में उपपन्न होते हैं, यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता के कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है ?
गौतम ! वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ नहीं है । गौतम ! वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में योग्य हैं, अयोग्य नहीं हैं। गौतम ! वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में दायित्वपूर्ण हैं, दायित्वहीन नहीं हैं। गौतम ! वे भगवान् स्थविर उन श्रमणोपासकों को ये इस प्रकार के उत्तर देने में विशिष्ट दायित्वपूर्ण हैं, विशिष्ट दायित्वहीन नहीं हैं - आर्यो ! पूर्वकृत तप से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं। आर्यो ! पूर्वकृत संयम, कर्म की सत्ता और आसक्ति के कारण देव देवलोक में उपपन्न होते हैं यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता के कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है।
गौतम ! मैं भी इसी प्रकार आख्यान करता हूं, भाषण करता हूं, प्रज्ञापन करता हूं, प्ररूपणा करता हूं - पूर्वकृत तप से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं । पूर्वकृत संयम से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं। कर्म की सत्ता से देव देवलोक में उपपन्न होते हैं। आसक्ति के कारण देव देवलोक में उपपन्न होते हैं ।
आर्यो ! पूर्वकृत तप, पूर्वकृत संयम, कर्म की सत्ता और आसक्ति के कारण देव देवलोक में उपपन्न होते हैं । यह अर्थ सत्य है, अहंमानिता के कारण ऐसा नहीं कहा जा रहा है।
१११. भन्ते । तथारूप श्रमण-माहन की पर्युपासना करने का क्या फल है ?
गौतम ! पर्युपासना का फल है - श्रवण ।
भन्ते ! श्रवण का क्या फल है ?
गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है।
भन्ते ! ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है।
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