Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २ : उ. १-४ : सू. ७१-७७ है ? 'गौतम! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर भगवान् गौतम से इस प्रकार कहते हैं- 'गौतम! मेरा अन्तेवासी स्कन्दक अनगार, जो प्रकृति से भद्र और प्रकृति से उपशान्त था, जिसकी प्रकृति में क्रोध मान-माया-लोभ प्रतनु थे, जो मृदु-मार्दव से सम्पन्न, आत्मलीन और विनीत था, उसने मेरी आज्ञा पाकर स्वयं ही पांच महाव्रतों की आरोहणा की यावत् एक महीने की संलेखना से अपने आप को कृश बनाया, अनशन के द्वारा साठ भक्तों का छेदन किया। वह आलोचना और प्रतिक्रमण कर, समाधिपूर्ण दशा में कालमास में काल को प्राप्त कर अच्युत कल्प में देवरूप में उपपन्न हुआ है ।
७२. वहां कुछ देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की प्रज्ञप्त है। वहां स्कन्दक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम है ।
७३.
भन्ते ! वह स्कन्दक देव आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ?
गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा ।
दूसरा उद्देश
समुद्घात पद
७४. भन्ते ! समुद्घात कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! समुद्घात सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे - वेदना - समुद्घात, कषाय- समुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रिय-समुद्घात, तैजस- समुद्घात, आहारक- समुद्घात और केवलि - समुद्घात । छाद्मस्थिक समुद्घात को छोड़कर पण्णवणा का समुद्घात - पद (३६) ज्ञातव्य है ।
तीसरा उद्देशक
पृथ्वी
-पद
७५. भन्ते ! पृथ्वियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम !
पृथ्वियां सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे - रत्न - प्रभा, शर्करा - प्रभा, बालुका-प्रभा, पंक-प्रभा, धूम - प्रभा, तमः प्रभा और तमस्तमा । जीवाजीवाभिगम में नैरयिकों का जो दूसरा उद्देशक है, वह ज्ञातव्य है यावत्
७६. क्या सब प्राणी ( वहां ) पहले भी उपपन्न हुए हैं ?
हां, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार ।
चौथा उद्देशक
इन्द्रिय-पद
७७. भन्ते ! इन्द्रियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! इन्द्रियां पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और
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