Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २ : उ. १ : सू. ३४-४३
भगवती सूत्र ३४. भन्ते'! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार करते हैं। वन्दन-नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले–भन्ते! कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक देवानुप्रिय के पास मुण्ड होकर अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रवजित होने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ३५. जितने में श्रमण भगवान् महावीर भगवान् गौतम से यह बात कह रहे हैं, उतने में वह
कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक शीघ्र ही उस स्थान पर पहुंच गया। ३६. भगवान् गौतम कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक को निकट आया हुआ जानकर शीघ्र ही खड़े होते हैं, खड़े होकर शीघ्र ही सामने जाते हैं, जहां कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक है, वहां पहुंचते हैं, पहुंचकर उन्होंने कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक से इस प्रकार कहा-हे स्कन्दक! स्वागत है स्कन्दक! सुस्वागत है स्कन्दक! अन्वागत है स्कन्दक! स्वागत-अन्वागत है स्कन्दक! स्कन्दक! श्रावस्ती नगरी में वैशालिकश्रावक निर्ग्रन्थ पिंगल ने तुमसे यह प्रश्न पूछा-मागध! क्या लोक सान्त है अथवा अनन्त है? इस प्रकार गौतम ने वह सारी बात कही यावत् जहां भगवान् महावीर है, वहां तुम आए हो। स्कन्दक! कया यह अर्थ संगत है?
हां, है। ३७. उस कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा- गौतम!वह ऐसा तथारूप ज्ञानी अथवा तपस्वी कौन है जिसने मेरा यह रहस्यपूर्ण अर्थ तुम्हें बताया, जिससे यह तुम जानते हो? ३८. भगवान् गौतम ने कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक से इस प्रकार कहा-स्कन्दक! मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर हैं। वे उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन, केवली,
अतीत, वर्तमान और भविष्य के विज्ञाता, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं। उन्होंने मुझे तुम्हारा यह रहस्यपूर्ण अर्थ बताया। स्कन्दक! जिससे यह मैं जानता हूं। ३९. कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा-गौतम! हम चलें, तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करें, सत्कार-सम्मान करें। वे कल्याणकारी, मंगल देव और प्रशस्तचित्तवाले हैं, उनकी हम पर्युपासना करें।
देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख हो, प्रतिबंध मत करो। ४०. भगवान् गौतम ने कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक के साथ जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां
जाने का संकल्प किया। ४१. उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर प्रतिदिनभोजी थे। ४२. प्रतिदिनभोजी श्रमण भगवान् महावीर का शरीर प्रधान, शृंगारित (अतिशयशोभित), कल्याण, शिव, धन्य, मंगलमय, अलंकृत न होने पर भी विभूषित, लक्षण, व्यञ्जन, गुणों से युक्त और श्री से अतीव-अतीव उपशोभमान है। ४३. वह कात्यायन-सगोत्र स्कन्दक प्रतिदिनभोजी श्रमण भगवान् महावीर के प्रधान, शृंगारित, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलमय, अलंकृत न होने पर भी विभूषित, लक्षण, व्यञ्जन, गुणों से
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