Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १ : उ. २ : सू. ५५-६२ ५५. (नैरयिक से लेकर) वमानिक तक इसी प्रकार वक्तव्य है। ५६. भन्ते! क्या जीव स्वयंकृत दुःख का वेदन करते हैं?
गौतम! जीव किसी दुःख का वेदन करते हैं, किसी दुःख का वेदन नहीं करते। ५७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जीव किसी दुःख का वेदन करते हैं, किसी दुःख का वेदन नहीं करते? गौतम! जीव उदीर्ण दुःख का वेदन करते हैं, अनुदीर्ण दुःख का वेदन नहीं करते। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव किसी दुःख का वेदन करते हैं, किसी दुःख का वेदन नहीं करते। ५८. (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक इसी प्रकार वक्तव्य है। ५९. भन्ते! क्या जीव स्वयंकृत आयुष्य का वेदन करता है? गौतम! जीव किसी आयुष्य का वेदन करता है, किसी आयुष्य का वेदन नहीं करता। जैसे-दुःख के दो दण्डक (वाक्य-रचना-विकल्प) बतलाए गए हैं, वैसे ही आयुष्य के भी दो दण्डक वक्तव्य हैं-एकवचन वाला और बहुवचन वाला। नैरयिक आदि जीवों का समान आहार, समान शरीर आदि-पद ६०. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान आहार, समान शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ६१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब नैरयिक समान आहार, समान शरीर
और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं होते? गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो महाशरीरी हैं, वे बहुतर पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुतर पुद्गलों का परिणमन करते हैं और बहुतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं, बहुतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं; बार-आर आहार करते हैं, बार-बार परिणमन करते हैं, बार-बार उच्छ्वास करते हैं, और बार-बार निःश्वास करते हैं। इनमें जो अल्पशरीरी हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का परिणमन करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं और अल्पतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं; वे कदाचित् (नियमित समय में) आहार करते हैं, कदाचित् परिणमन करते हैं, कदाचित् उच्छ्वास करते हैं और कदाचित् निःश्वास करते हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान आहार, समान शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं होते। ६२. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान कर्म वाले हैं? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है।