Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १ : उ. ४ : सू. २०१-२०९ पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत्त हुए, उन्होंने सब दुःखों का अन्त किया, करते हैं
और करेंगे। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-छद्मस्थ मनुष्य अनन्त अतीत शाश्वत काल में केवल संयम, केवल संवर, केवल ब्रह्मचर्यवास, केवल प्रवचन-माता के द्वारा सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत नहीं हुए थे, उन्होंने सब दुःखों का अंत नहीं किया था। २०२. वर्तमान काल में भी इसी प्रकार ज्ञातव्य है। केवल–सिद्ध होता है यह वर्तमानकालीन क्रिया-पद वक्तव्य है। २०३. भविष्यकाल में भी इसी प्रकार ज्ञातव्य है। केवल–सिद्ध होगा-यह भविष्यकालीन क्रिया-पद वक्तव्य है। २०४. छद्मस्थ मनुष्य की भांति आधोवधिक (देशावधि-युक्त) और परमाधोवधिक (सर्व
अवधि-युक्त) के भी तीन-तीन आलापक वक्तव्य हैं। २०५. भन्ते! क्या केवली मनुष्य इस अनन्त अतीत शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत हुआ था, उसने सब दुःखों का अन्त किया था? हां, गौतम! केवली मनुष्य अनन्त अतीत शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत हुआ था, उसने सब दुःखों का अन्त किया था। २०६. भन्ते! क्या केवली मनुष्य वर्तमान शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है? हां, गौतम ! केवली मनुष्य वर्तमान शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है। २०७. भन्ते! क्या केवल मनुष्य अनन्त अनागत शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा? हां, गौतम! केवली मनुष्य अनन्त अनागत शाश्वत-काल में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। २०८. भन्ते! इस अनन्त अतीत शाश्वत-काल में, वर्तमान शाश्वत काल में और अनन्त अनागत शाश्वत काल में जो भी अन्तकर अथवा अन्तिमशरीरी हैं, जिन्होंने सब दुःखों का अन्त किया था, करते हैं अथवा करेंगे, क्या वे सब उत्पन्नज्ञानदर्शन के धारक अर्हत्, जिन और केवली होकर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होते हैं? उन्होंने सब दुःखों का अन्त किया था, करते हैं अथवा करेंगे? हां, गौतम! इस अनन्त अतीत शाश्वत-काल में, वर्तमान शाश्वत काल में और अनन्त अनागत शाश्वत काल में जो भी अन्तकर अथवा अन्तिमशरीरी हैं, जिन्होंने सब दुःखों का अन्त किया था, करते हैं अथवा करेंगे, वे सब उत्पन्नज्ञान-दर्शन के धारक अर्हत्, जिन और केवली होकर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत होते हैं, उन्होंने सब दुःखों का
अन्त किया था, करते हैं अथवा करेंगे। २०९. भन्ते! उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन के धारक अर्हत्, जिन और केवली को 'अलमस्तु' ऐसा कहा
जा सकता है?
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