Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १ : उ ६ : सू. २७६-२८८
हां, होती है।
२७७. भन्ते! क्या वह स्पृष्ट होती है ? अथवा अस्पृष्ट होती है ?
गौतम ! वह स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती यावत् व्याघात न होने पर प्राणातिपात - क्रिया छहों दिशाओं में होती है, व्याघात होने पर तीन, चार, अथवा पांच दिशाओं में होती है । २७८. भन्ते ! क्या वह कृत होती है ? अथवा अकृत होती है ?
गौतम ! वह कृत होती है, अकृत नहीं होती ।
२७९. भन्ते ! क्या वह आत्म-कृत होती है ? पर-कृत होती है ? अथवा उभय-कृत होती है ? गौतम ! वह आत्म-कृत होती है, पर कृत नहीं होती, उभय-कृत भी नहीं होती ।
२८०. भन्ते ! क्या वह आनुपूर्वी (क्रम) - कृत होती है ? अथवा अनानुपूर्वी कृत होती है ?
गौतम ! वह आनुपूर्वीकृत होती है, अनानुपूर्वीकृत नहीं होती। जो क्रिया की गई है, जो की जा रही है और जो की जायेगी, यह सारी आनुपूर्वी कृत है, अनानुपूर्वीकृत नहीं - ऐसा कहा जा सकता है।
२८१. भन्ते ! क्या नैरयिक जीवों के प्राणातिपात क्रिया होती है ?
हां, होती है।
२८२. भन्ते! क्या वह स्पृष्ट होती है ? अथवा अस्पृष्ट होती है ?
गौतम ! वह स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती यावत् नियमतः छहों दिशाओं में होती है। २८३. भन्ते ! क्या वह कृत होती है ? अथवा अकृत होती है ।
गौतम ! वह कृत होती है, अकृत नहीं होती ।
२८४. यहां पूर्व-आलापक वक्तव्य है यावत् वह अनानुपूर्वी कृत नहीं होती - ऐसा कहा जा सकता है।
२८५. एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक के सभी जीव नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं । एकेन्द्रिय सामान्य-जीव की भांति व्यक्तव्य हैं ।
२८६. प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति मायामृषा और मिथ्या - दर्शन - शल्य - ये अठारह क्रियाएं हैं। जैसे प्राणातिपात का आलापक चौबीस दण्डक में कहा गया, वैसे मृषावाद आदि सभी आलापक वक्तव्य हैं ।
२८७. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है - इस प्रकार भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन करते हैं यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
रोह के प्रश्न-पद
२८८. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर का एक अन्तेवासी शिष्य था । उसका नाम था अनगार रोह । वह प्रकृति से भद्र और उपशान्त था । उसके क्रोध, मान, माया
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