Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १ : उ. ९ : सू. ४१८-४२१ हां, गौतम! श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अक्रोध, अमान, अमाया और अलोभ का भाव प्रशस्त
कांक्षाप्रदोष-पद ४१९. भन्ते! क्या कांक्षा-प्रदोष क्षीण होने पर श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तकर या अन्तिम-शरीरी होता
कोई श्रमण पहले मोह-बहुल रहकर भी इसके पश्चात् संवृत होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, तो क्या वह मृत्यु के अनन्तर सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिवृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है? हां, गौतम! कांक्षा-प्रदोष क्षीण होने पर श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तकर या अन्तिम-शरीरी होता है। पहले मोह-बहुल रहकर भी वह उसके पश्चात् संवृत होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, तो मृत्यु के अनन्तर सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है। ४२०. भन्ते! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं-एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का और परभव के आयुष्य का। जिस समय वह इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय पर-भव के आयुष्य का बन्धन करता है, जिस समय पर-भव के आयुष्य का बन्धन करता है उसी समय इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है। इस भव के आयुष्य का बन्धन करने से पर-भव के आयुष्य का बन्धन करता है। पर-भव के आयुष्य का बन्धन करने से इस भव के आयुष्य का बन्ध करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है-इस भव के आयुष्य का
और पर-भव के आयुष्य का। ४२१. भन्ते! वह यह इस प्रकार कैसे होता है? गौतम! वे अन्ययूथिक जो ऐसा आख्यान करते हैं यावत् एक जीव एक समय में दो आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का, पर-भव के आयुष्य का। ऐसा जिन्होंने कहा है, उन्होंने मिथ्या कहा है। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं-एक जीव एक समय में एक ही आयु का बन्धन करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का अथवा पर-भव के आयुष्य का। जिस समय वह इस भव के आयुष्य का बन्धन करता है, उसी समय पर-भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता। जिस समय पर-भव के आयुष्य का बन्धन करता है उसी समय इस भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता। इस भव के आयुष्य का बन्धन करने से पर-भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता।