Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १ : उ. १० : सू. ४४३-४४५
वह जो बोल रहा है, उसके भाषा है; जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा नहीं है।
क्रिया करने से पहले क्रिया दुःखकर नहीं होती; क्रियमाण क्रिया दुःखकर होती है; क्रिया का समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर नहीं होती।
भगवती सूत्र
जो यह क्रिया करने से पहले दुःखकर नहीं होती; क्रियमाण क्रिया दुःखकर होती है; क्रिया का समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर नहीं होती; क्या वह करने से दुःखकर होती है ? न करने से दुःखकर होती है ?
क्रिया करने 'दुःखकर होती है। न करने से वह दुःखकर नहीं होती ऐसा कहा जा सकता है । दुःख कृत्य है, दुःख स्पृश्य है, दुःख क्रियमाण कृत है, प्राण, भूत, जीव और सत्त्व क्रिया कर-करके वेदना का अनुभव करते हैं - ऐसा कहा जा सकता है।
ऐर्यापथिकी- साम्परायिकी - पद
४४४. भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं - एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है, जैसे - ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी ।
जिस समय ऐर्यापथिकी करता है, उसी समय साम्परायिकी करता है ।
जिस समय साम्परायिकी करता है, उसी समय ऐर्यापथिकी करता है । ऐर्यापथिकी करने से साम्परायिकी करता है ।
साम्परायिकी करने से ऐर्यापथिकी करता है ।
इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है, जैसे- ऐर्यापथिकी और
साम्परायिकी ।
४४५. भन्ते ! यह इस प्रकार कैसे होता है ?
गौतम ! वे अन्ययूथिक जो इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं - एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है यावत् ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी ।
जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं - एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है, जैसे - ऐर्यापथिकी अथवा साम्परायिकी ।
जिस समय ऐर्यापथिकी करता है, उस समय साम्परायिकी नहीं करता ।
जिस समय साम्परायिकी करता है, उस समय ऐर्यापथिकी नहीं करता ।
ऐर्यापथिकी करने से साम्परायिकी नहीं करता ।
साम्परायिकी करने से ऐर्यापथिकी नहीं करता ।
इस प्रकार एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है, जैसे- ऐर्यापथिकी अथवा साम्परायिकी ।
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