Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. १ : उ. ४ : सू. १९१-२०१
भगवती सूत्र पुद्गल और जीव की त्रैकालिकता का पद १९१. भन्ते! यह परमाणु अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम! यह परमाणु अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, ऐसा कहा जा सकता है। १९२. भन्ते! यह परमाणु वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम ! यह परमाणु वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, ऐसा कहा जा सकता है। १९३. भन्ते! यह परमाणु अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता
हां, गौतम ! यह परमाणु अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। १९४. भन्ते! यह स्कन्ध अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम! यह स्कन्ध अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, ऐसा कहा जा सकता है। १९५. भन्ते! यह स्कन्ध वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम! यह स्कन्ध वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, ऐसा कहा जा सकता है। १९६. भन्ते! यह स्कन्ध अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता
हां, गौतम! यह स्कन्ध अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। १९७. भन्ते! यह जीव अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम ! यह जीव अनन्त अतीत-काल में शाश्वत था, ऐसा कहा जा सकता है। १९८. भन्ते! यह जीव वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, क्या ऐसा कहा जा सकता है? __हां, गौतम ! यह जीव वर्तमान-काल में शाश्वत रहता है, ऐसा कहा जा सकता है। १९९. भन्ते! यह जीव अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता है?
हां, गौतम ! यह जीव अनन्त अनागत-काल में शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। मोक्ष-पद २००. भन्ते! क्या छद्मस्थ मनुष्य इस अनन्त अतीत शाश्वत-काल में केवल संयम, केवल संवर, केवल ब्रह्मचर्यवास और केवल प्रवचनमाता के द्वारा सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत हुआ था, उसने सब दुःखों का अन्त किया था?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। २०१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-छद्मस्थ मनुष्य अनन्त अतीत शाश्वत-काल में केवल संयम, केवल संवर, केवल ब्रह्मचर्यवास और केवल प्रवचन-माता के द्वारा सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत नहीं हुआ था, उसने सब दुःखों का अन्त नहीं किया था? गौतम! जो भी अन्तकर अथवा अन्तिमशरीरी हैं, जिन्होंने सब दुःखों का अन्त किया था, करते हैं और करेंगें वे सब उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन-धर अर्हत्, जिन और केवली होकर उसके
२६