Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १ : उ. २ : सू. ७२-८० ७२. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान आयु वाले हैं? क्या वे एक साथ उपपन्न हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ७३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान आयु वाले नहीं हैं और एक साथ उपपन्न नहीं हैं? गौतम! नैरयिक चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. कुछ नैरयिक समान आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं, २. कुछ नैरयिक समान आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं, ३. कुछ नैरयिक विषम आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं, ४. कुछ नैरयिक विषम आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है सब नैरयिक समान
आयु वाले नहीं हैं और एक साथ उपपन्न नहीं हैं। ७४. भन्ते! क्या सब असुरकुमार-देव समान आहार और समान शरीर वाले हैं?
यह पूरा प्रकरण नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य है। केवल इतना अन्तर है-कर्म, वर्ण और लेश्याओं का विषय परिवर्तनीय है-नारकीय जीवों के वर्णन से विपरीत रूप में वक्तव्य है। (पूर्व उपपन्न होने वाले असुरकुमार देव महत्तर कर्मवाले, अविशुद्धतर वर्ण और अविशुद्धतर लेश्या वाले हैं। पश्चाद् उपपन्न असुरकुमार-देव अल्पतर कर्म वाले, विशुद्धतर वर्ण और विशुद्धतर लेश्या वाले हैं। शेष नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं।) ७५. इसी प्रकार नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के देवों के विषय में वक्तव्य हैं। ७६. पृथ्वीकायिक-जीवों के आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं। ७७. भन्ते! क्या सब पृथ्वीकायिक-जीव समान वेदना वाले हैं? ___ हां, गौतम! सब पृथ्वीकायिक-जीव समान वेदना वाले हैं। ७८. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले
गौतम! सब पृथ्वीकायिक-जीव असंज्ञी (अमनस्क) हैं। वे असंज्ञी के होने वाली वेदना को अव्यक्त रूप में (मूर्च्छित की भांति) अनुभव करते हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है सब पृथ्वीकायिक-जीव समान वेदना वाले हैं। ७९. भन्ते! क्या सब पृथ्वीकायिक-जीव समान क्रिया वाले हैं?
हां, गौतम! सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं। ८०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब पृथ्वीकायिक-जीव समान क्रिया वाले
गौतम! सब पृथ्वीकायिक-जीव मायी-मिथ्या-दृष्टि हैं। उनके निश्चित रूप से पांचों क्रियाएं होती हैं, जैसे-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, माया-प्रत्यया, अप्रत्याख्यान-क्रिया और मिथ्यादर्शन-प्रत्यया। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब पृथ्वीकायिक-जीव समान क्रिया वाले हैं।