Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १ : उ. २ : सू. ६३-७१
भगवती सूत्र ६३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान कर्म वाले नहीं हैं?
गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे अल्पतरकर्म वाले हैं। इनमें जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे महत्तरकर्म वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान कर्म वाले नहीं हैं। ६४. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान वर्ण वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ६५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यह सब नैरयिक समान वर्ण वाले नहीं हैं ?
गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न । इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इनमें जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान वर्ण वाले नहीं हैं। ६६. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान लेश्या वाले हैं?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। ६७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान लेश्या वाले नहीं हैं?
गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे विशुद्धतर लेश्या वाले हैं। इनमें जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे अविशुद्धतर लेश्या वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान लेश्या वाले नहीं
६८. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान वेदना वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ६९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान वेदना वाले नहीं हैं? गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत। इनमें जो संज्ञिभूत हैं, वे महान् वेदना वाले हैं। इनमें जो असंज्ञिभूत हैं, वे अल्पतर वेदना वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान वेदना वाले नहीं हैं। ७०. भन्ते! क्या सब नैरयिक समान क्रिया वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं हैं। ७१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब नैरयिक समान क्रिया वाले नहीं हैं? गौतम! नैरयिक तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–सम्यग्-दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि और सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि। इनमें जो सम्यग्-दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे आरंभिकी, पारिग्रहिकी, माया-प्रत्यया और अप्रत्याख्यान-क्रिया। इनमें जो मिथ्या-दृष्टि हैं, उनके पांच क्रियाएं होती हैं, जैसे-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, माया-प्रत्यया, अप्रत्याख्यान-क्रिया और मिथ्या-दर्शन-प्रत्यया। इसी प्रकार सम्यग्-मिथ्यादृष्टि जीवों के भी पांच क्रियाएं होती हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब नैरयिक समान क्रिया वाले नहीं हैं।
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