Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पहला शतक
पहला उद्देशक मंगल-पद १. अर्हतों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार,
सब साधुओं को नमस्कार । २. ब्राह्मी लिपि को नमस्कार । संग्रहणी गाथा प्रथम शतक में दस उद्देशक हैं-राजगृह में प्रश्नोत्तर-१. चलमान चलित २. दुःख ३. कांक्षाप्रदोष ४. कर्म-प्रकृति ५. पृथ्वियां ६. यावान् ७. नैरयिक ८. बाल ९ गुरुक १० चलमान चलित। ३. श्रुत को नमस्कार। उत्क्षेप-पद ४. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था-नगर का वर्णन । ५. उस राजगृह नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशाभाग में गुणशिलक नाम का चैत्य था। ६. वहां श्रेणिक राजा था और उसकी पटरानी थी चिल्लणा। ७. उस काल और उस समय में प्रवचन के आदिकर्ता, तीर्थंकर, स्वयं-संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषों में प्रवर पुण्डरीक, पुरुषों में प्रवर गन्धहस्ती, लोक में उत्तम, लोक के नाथ, लोक में प्रदीप, लोक में प्रद्योतकर, अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, धर्मदेशक, धर्म के सारथि, धर्म के प्रवर चतुर्दिग्जयी चक्रवर्ती, अप्रतिहत प्रवर ज्ञान-दर्शन के धारक, निरावरण, ज्ञाता, ज्ञान देने वाले, बुद्ध, बोध देने वाले, मुक्त, मुक्त करने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अचल, अरुज, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, सिद्धि-गति नामक स्थान की संप्राप्ति के इच्छुक यावत् श्रमण भगवान् महावीर क्रमानुसार विचरण, ग्रामानुग्राम में परिव्रजन
और सुखपूर्वक विहार करते हुए जहां राजगृह नगर और गुणशिलक चैत्य है, वहां आते हैं, वहां आकर वे प्रवास-योग्य स्थान की अनुमति लेते हैं, अनुमति लेकर संयम और तप से
अपने आपको भावित करते हुए रह रहे हैं। ८. परिषद् ने नगर से निर्गमन किया। भगवान् ने धर्म कहा। परिषद् वापस नगर में चली गई। ९. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमसगोत्र सात हाथ की ऊंचाई वाले, रामचतुरस्र-संस्थान से संस्थित, वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन-युक्त,