Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. १ : उ. १ : सू. ९-१५
भगवती सूत्र कसौटी पर खचित स्वण-रेखा तथा पद्मकेसर की भांति पीताभ गौर वर्ण वाले, उग्र-तपस्वी, दीप्त-तपस्वी, तप्त-तपस्वी, महा-तपस्वी, महान्, घोर, घोर गुणों से युक्त, घोर-तपस्वी, घोर-ब्रह्मचर्यवासी, लघिमा-ऋद्धि-सम्पन्न, विपुल-तेजो-लेश्या को अन्तर्लीन रखने वाले, चतुर्दश-पूर्वी, चार ज्ञान से समन्वित और सर्वाक्षर-सन्निपाती-लब्धि से युक्त इन्द्रभूति नामक अनगार श्रमण भगवान् महावीर के न अति दूर और न अति निकट, ऊर्ध्वजानु अधःसिर (उकड आसन की मद्रा में) और ध्यान-कोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे हैं। १०. उस समय भगवान् गौतम के मन में एक श्रद्धा (इच्छा), एक संशय (जिज्ञासा) और एक कुतूहल जन्मा; एक श्रद्धा, एक संशय और एक कुतूहल उत्पन्न हुआ; एक श्रद्धा, एक संशय
और एक कुतूहल बढ़ा तथा एक श्रद्धा, एक संशय और एक कुतूहल प्रबलतम बना। वे उठने की मुद्रा में उठते हैं, उठकर जहां श्रमण भगवान् महावीर हैं, वहां आते हैं, वहां आकर श्रमण भगवान् महावीर को दाई ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं, वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर न अति निकट, न अति दूर शुश्रूषा और नमस्कार की मुद्रा में उनके
सम्मुख सविनय बद्धाञ्जलि होकर पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोलेचलमान-पद ११. भन्ते! क्या चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यमान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत, निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण होता है? हां, गौतम! चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यमान छिन, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत, निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण होता है। १२. भन्ते! क्या ये नव पद एकार्थक, नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं अथवा नाना-अर्थ, नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं? गौतम! चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित और प्रहीयमाण प्रहीण-ये चार पद उत्पाद-पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक, नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं। छिद्यमान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत और निर्जीयमाण निर्जीर्ण ये पांच पद व्यय-पक्ष की अपेक्षा से नाना-अर्थ, नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं। नैरयिकों की स्थिति आदि का पद १३. भन्ते! नैरयिक-जीवों की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है?
गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। १४. भन्ते! नैरयिक-जीव कितने काल से आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते
यह पण्णवणा के 'उच्छ्वास-पद' (७) की भांति वक्तव्य है। १५. भन्ते! क्या नैरयिक-जीव आहार की इच्छा करते हैं?
हां, गौतम! वे आहार की इच्छा करते हैं। यह पण्णवणा के 'आहार-पद' (२८) के प्रथम उद्देशक की भांति वक्तव्य है।