Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १ : उ. १ : सू. ३८-४५
भगवती सूत्र है-(कृष्ण आदि तीन लेश्याएं अप्रमत्त संयत में नहीं होती, इसलिए) यहां प्रमत्त और अप्रमत का विभाग वक्तव्य नहीं है। तेजो-लेश्या, पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या से युक्त जीव सामान्य जीव की भांति वक्तव्य हैं। केवल इतना अन्तर है-लेश्या-सूत्र में सिद्ध का सूत्र वक्तव्य नहीं है। ज्ञान आदि का भवान्तर-संक्रमण-पद ३९. भन्ते! क्या (कोई) ज्ञान इस जन्म तक ही सीमित रहता है? क्या ज्ञान अगले जन्म में साथ जाता है? क्या ज्ञान वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहता है? गौतम! (कोई) ज्ञान इस जन्म तक भी सीमित रहता है, अगले जन्म में भी साथ जाता है, वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में भी विद्यमान रहता है। ४०. भन्ते! क्या दर्शन (सम्यक्त्व) इस जन्म तक ही सीमित रहता है? क्या दर्शन अगले जन्म में साथ जाता है? क्या दर्शन वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहता
गौतम! दर्शन इस जन्म तक भी सीमित रहता है, अगले जन्म में भी साथ जाता है, वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में भी विद्यमान रहता है। ४१. भन्ते! क्या चारित्र इस जन्म तक ही सीमित रहता है? क्या चारित्र अगले जन्म में साथ जाता है? क्या चारित्र वर्तमान और भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहता है? गौतम! चारित्र इस जन्म तक ही सीमित रहता है, वह अगले जन्म में साथ नहीं जाता, वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान नहीं रहता। ४२. भन्ते! क्या तपस्या इस जन्म तक ही सीमित रहती है? क्या तपस्या अगले जन्म में साथ जाती है? क्या तपस्या वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहती है? गौतम! तपस्या इस जन्म तक ही सीमित रहती है, अगले जन्म में साथ नहीं जाती, वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान नहीं रहती। ४३. भन्ते! क्या संयम इस जन्म तक ही सीमित रहता है? क्या संयम अगले जन्म में साथ जाता है? क्या संयम वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहता है? गौतम! संयम इस जन्म तक ही सीमित रहता है, अगले जन्म में साथ नहीं जाता, वर्तमान जन्म और भावी जन्म दोनों में विद्यमान नहीं रहता। असंवृत-संवृत-अनगार-पद ४४. भन्ते! क्या असंवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का
अन्त करता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ४५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है
असंवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत नहीं होता, सब दुःखों का अन्त नहीं करता?