Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(LXIII)
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संग्रहणी गाथा प्रशस्त निर्जरा का श्रेयस्त्व-पद करण-पद महावेदना-महानिर्जरा-चतुर्भंग-पद संग्रहणी गाथा दूसरा उद्देशक तृतीय उद्देशक संग्रहणी गाथा महाकर्म वाले आदि के पुद्गल
बन्ध-पद अल्पकर्म वाले आदि के पुद्गल
भेद का पद कर्मोपचय-पद कर्मोपचय का सादि-अनादि-पद कर्म-प्रकृति-बंध-विवेचन-पद वेदक-अवेदक जीवों का अल्प
बहुत्व-पद चौथा उद्देशक काल की अपेक्षा सप्रदेश-अप्रदेश-पद । संग्रहणी गाथा प्रत्याख्यानादि-पद संग्रहणी गाथा पांचवां उद्देशक तमस्काय-पद कृष्णराजि-पद संग्रहणी गाथा लोकान्तिक देव-पद संग्रहणी गाथा संग्रहणी गाथा छठा उद्देशक नैरयिक आदि के आवास-पद मारणान्तिकसमुद्घात-पद सातवां उद्देशक धान्यों की योनि और स्थिति का पद गणना-काल-पद
१९१ औपमिक-काल-पद १९१ सुषम-सुषमा में भरतवर्ष-पद
२१४ १९२ आठवां उद्देशक
२१४ १९३ पृथ्वी आदि में गेह आदि की पृच्छा १९४ का पद
२१४ १९४ संग्रहणी गाथा १९४ आयुष्कबन्ध-पद
२१६ १९४ लवणादि समुद्र-पद
२१६ नवां उद्देशक
२१७ १९४ कर्मप्रकृति-बन्ध-पद
२१७ महर्द्धिक देव की विक्रिया का पद १९५ अविशुद्ध लेश्या आदि वाले देव का १९५ ज्ञान-दर्शन-पद
२१९ १९६ दशवां उद्देशक
२१९ १९६ सुख-दुःख-उपदर्शन-पद
२१९ जीव-चेतना-पद
२२० २०० वेदना-पद
२२१ २०१ नैरयिक आदि जीवों के आहार का पद २२१ २०१ केवली के ज्ञान का पद
२२२ २०३ सातवां शतक (पृ. २२३-२५९) २०३ पहला उद्देशक
२२३ संग्रहणी गाथा अनाहारक-पद
२२३ २०४ सर्वअल्प आहार-पद
२२३ २०५ लोक-संस्थान-पद
२२३ २०६ श्रमणोपासक की क्रिया का पद
२२४ २०८ श्रमण-प्रतिलाभ से लाभ-पद
२२४ २०८ अकर्म की गति का पद
२२४ २०९ दुःखी के दुःखस्पर्श आदि का पद २२५ २०९ ऐर्यापथिक-साम्परायिक-क्रिया-पद २२६ २०९ स-अंगार आदि दोष से दूषित पान२१० -भोजन-पद
२२६ २११ दूसरा उद्देशक
२२८ २११ सुप्रत्याख्यान-दुष्प्रत्याख्यान-पद २२८ २१२ प्रत्याख्यान-पद
२२९
२२३
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