Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(LXII)
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लवणसमुद्रादि में सूर्यादि की वक्तव्यता
का पद दूसरा उद्देशक वायु-पद
ओदन आदि 'किसके शरीर' का पद लवण समुद्र-पद तीसरा उद्देशक आयुष्य-प्रकरण-प्रतिसंवेदन-पद सायुष्यसंक्रमण-पद चौथा उद्देशक छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द-श्रवण
का पद छद्मस्थ और केवली का हास्य-पद छद्मस्थ और केवली की निद्रा का पद गर्भ-संहरण-पद अतिमुक्तक-पद देवों की नोसंयतवक्तव्यता का पद देवभाषा-पद छद्मस्थ और केवली का ज्ञान-भेद-पद केवली के प्रणीत-मन-वचन-पद अनुत्तरोपपातिक देवों द्वारा केवली के साथ आलाप का पद केवलियों के इन्द्रिय-ज्ञान का निषेध-पद केवलियों की योग-चंचलता का पद चतुर्दशपूर्वियों का सामर्थ्य-पद पांचवां उद्देशक मोक्ष-पद एवंभूत-अनेवंभूत-वेदना-पद कुलकर आदि-पद छठा उद्देशक अल्पायु-दीर्घायु-पद अशुभ-शुभ-दीर्घायु-पद क्रय-विक्रय-क्रिया-पद अग्निकाय में महाकर्म आदि-पद
धनुःप्रक्षेप में क्रिया-पद
१७१ अन्ययूथिक-पद
१७२ १५३ नैरयिकविक्रिया-पद १५३ आधाकर्म आदि आहार के सम्बन्ध १५५ में आराधनादि-पद १५६ आचार्य-उपाध्याय की सिद्धि का पद १५६ अभ्याख्यानी के कर्मबन्ध-पद
१७४ १५६ सातवां उद्देशक
१७४ .१५८ परमाणु-स्कन्धों का एजनादि-पद १७४ १५८ परमाणु-स्कन्धों का छेदन आदि-पद
१७४ परमाणु-स्कन्धों का सार्द्ध १५८ समध्यादि-पद
१७६ १६० परमाणु-स्कन्धों का परस्पर १६१ स्पर्शना-पद
१७७ १६१ परमाणु-स्कन्धों की संस्थिति का पद १६२ परमाणु-स्कन्धों का अन्तरकाल-पद १७९ १६४ परमाणु-स्कन्धों का परस्पर अल्प१६४ बहुत्व-पद
१७९ संग्रहणी गाथा
१७९ जीवों का समारम्भ-सपरिग्रह-पद १७९
हेतु-पद १६६ आठवां उद्देशक
१८२ निर्ग्रन्थीपुत्र-नारदपुत्र-पद १६६ जीवों की वृद्धि-हानि-अवस्थिति-पद १६७ जीवों का सोपचय-सापचय-आदि पद १८६ १६७ नवां उद्देशक
१८७ १६८ 'यह कौन राजगृह' का पद
१८७ १६८ उद्द्योत-अन्धकार-पद
१८७ १६८ मनुष्य-क्षेत्र में समयादि-पद
१८८ १६९ पापित्यीय-पद १६९ देवलोक-पद
१९० १६९ संग्रहणी गाथा १६९ दसवां उद्देशक
१९० १७० छठा शतक (पृ. १९१-२२२) १७१ पहला उद्देशक
१९१
१६४ सग्रहणागाचा
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