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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ ईशानेन्द्र का पूर्व भव
जिसको जहाँ देखता है वहीं प्रणाम करता है अर्थात् इन्द्र, स्कन्द (कार्तिकेय) रुद्र (महादेव) शिव, वैश्रमण (उत्तर दिशा के लोकपाल-कुबेर) शान्त रूपवाली चाण्डका (पार्वती) रौद्र रूपवाली चण्डिका अर्थात् महिषासुर को पीटती चण्डिका (पार्वती) राजा, युवराज, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, सार्थवाह, कौआ, कुत्ता, चाण्डाल, इत्यादि सब को प्रणाम करता है । इनमें से उच्च व्यक्ति को देखकर उच्च रीति से प्रणाम करता है और नीच को देखकर नीची रीति से प्रणाम करता है अर्थात् जिस को जिस रूप में देखता है उसको उसी रूप में प्रणाम करता है । इस कारण हे गौतम ! इस प्रवज्या का नाम 'प्राणामा' प्रव्रज्या है।
तएणं से तामली मोरियपुत्ते तेणं ओरालेणं, विपुलेणं, पयत्तेणं, पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं सुक्के, लुक्खे, जाव-धमणिसंतए जाए यावि होत्था, तए णं तस्स तामलिस्स बालतवस्सिस्स अण्णया कयाइं पुब्बरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिचजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए, चिंतिए, जाव-समुप्पजित्था, एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं, विपुलेणं, जाव-उदग्गेणं, उदत्तेणं, उत्तमेणं, महाणुभागेणं तवोकम्मेणं, सुक्के, लुक्खे जाव-धमणिसंतए जाए, तं अस्थि जा मे उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे. तावता मे सेयं, कल्लं जाव-जलंते, तामलित्तीए णगरीए, दिट्टाभट्टे य, पासंडत्थे य, गिहत्थे य, पुव्वसंगतिए य, पच्छासंगतिए य, परियायसंगतिए य आपुच्छित्ता तामलित्तीए णगरीए मझमझेणं णिग्गच्छित्ता, पाउगं कुंडियामाइयं उवगरणं, दारुमयं च पडिग्गहं
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