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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ३ वेदक का अल्पबहुत्व
कठिन शब्दार्थ - अवेयगा -- अवेदक - जिन जीवों में काम विकार उत्पन्न नहीं होता, अप्पबहुगाई- – अल्प बहुत्व, उच्चारेयव्वाइं उच्चारण करना चाहिये । भावार्थ - ३३ प्रश्न - हे भगवन् ! स्त्री-वेदक, पुरुष- वेदक, नपुंसक वेदक और अवेदक, इन जीवों में से कौन किससे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं और विशेषाधिक हैं ?
३३ उत्तर - हे गौतम ! सब से थोडे पुरुष-वेदक हैं। उनसे संख्येय गुणा स्त्री-वेदक हैं। उनसे अनन्त गुणा अवेदक हैं । और उनसे अनन्त गुणा नपुंसकवेदक हैं ।
पहले कहे हुए सब पदों का अल्प बहुत्व कहना चाहिये। यावत् सब से थोडे अचरम जीव हैं और उनसे अनन्त गुणा चरम जीव हैं ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
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विवेचन-वेदकों का अल्प बहुत्व बताते हुए यह बतलाया गया है कि पुरुषवेदक जीवों से स्त्रीवेदक जीव संख्यातगुणा अधिक हैं । इसका कारण यह है कि देवों की अपेक्षा देवियाँ बत्तीस गुणी और बत्तीस अधिक हैं। मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा मनुष्यणी (स्त्री) सत्ताईस गुणी और सत्ताईस अधिक हैं । तिर्यंचों की अपेक्षा तिर्यंचणियाँ तीन गुणी और तीन अधिक हैं | स्त्रीवेदक वालों की अपेक्षा अवेदक अनन्त गुणा हैं। इसका कारण यह है कि अनिवृति बादर संपरायादि गुणस्थानक वाले जीव और सिद्ध भगवान् अवेदक हैं । ये सत्र अनन्त हैं । इसलिये ये स्त्रीवेदकों की अपेक्षा अनन्त गुणा हैं । अवेदकों से नपुंसक वेदक अनन्त गुणा हैं । इसका कारण यह है कि सिद्ध भगवान् की अपेक्षा अनन्त कायिक जीव जो कि सब नपुंसक है, अनन्त गुणा हैं ।
जिस प्रकार वेदकों का अल्पबहुत्व द्वार कहा गया है, उसी तरह संयत द्वार से लेकर चरम द्वार तक चौदह ही द्वारों का अल्पबहुत्व कहना चाहिये । इसका विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे अल्पबहुत्व पद में हैं। विशेष जिज्ञासुओं को वहां देखना चाहिये । यहाँ पर जो यह कहा गया है कि अचरम की अपेक्षा चरम अनन्तगुणा है । इसका कारण यह है कि यहाँ अचरम का अर्थ अभव्य और सिद्ध लिया गया है । क्योंकि वे कभी भो चरम - अन्त को प्राप्त नहीं करेंगे। वे थोड़ हैं और उनसे चरम ( भव्य ) अनन्त गुणा हैं ।
॥ इति छठे शतक का तीसरा उद्देशक समाप्त ॥
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