________________
भगवती सूत्र--श.६ उ.
कर्मबन्ध के प्रकार
१०५९
समुद्रों की उपमेय संख्या को बतलाने के लिये कहा गया है कि-अढ़ाई सूक्ष्म उद्धार सागरो. पम या पच्चीस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म उद्धार पल्योषम मे जितने समय होते हैं, उतने ही लोक में द्वीप और समुद्र हैं। ये द्वीप मनुद, पृथ्वी, पानी, जीव और पुदगलों के परिणाम वाले है । इन द्वीप और समुद्रों में भी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, पृथ्वीकायिकपने यावत् श्रसकायिकपने अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं ।
॥ इति छठे शतक का आठवां उद्देशक समाप्त ॥
शतक ६ उद्देशक
कर्मबन्ध के प्रकार
१ प्रश्न-जीवे णं भंते ! णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ ।
१ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छबिहबंधए वा; बंधुद्देसो पण्णवणाए णेयन्यो । ___ कठिन शब्दार्थ-बंधमाणे-बांधता हुआ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म बांधता हुआ जीव, कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधता है ? - - १ उत्तर-हे गौतम ! सात प्रकार की प्रकृतियों को बांधता है, आठ प्रकार की बाँधता हे और छह प्रकार की बांधता है। यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org