Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 559
________________ १०७६ भगवती सूत्र-श. ६ उ. १० केवली अनिन्द्रिय होते हैं गाथा का अर्थ इस प्रकार हैं:-जीवों का सुख दुःख, जीव, जीव का प्राणधारण, भव्य, एकान्त दुःख वेदना, आत्मा द्वारा पुद्गलों का ग्रहण और केवली, इतने विषयों का विचार इस दसवें उद्देशक में किया गया है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-केवली भगवान् का ज्ञान और दर्शन निर्वृत, परिपूर्ण और आवरण रहित होता है । इसलिये वे इन्द्रियों द्वारा नहीं जानते और नहीं देखते हैं । इस विषय का विशेष विवेचन पांचवें शतक के चौथे उद्देशक में दे दिया गया है। ॥ इति छठे शतक का दसवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥ ॥ छठा शतक समाप्त ॥ द्वितीय भाग सम्पूर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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