Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 558
________________ भगवती सूत्र-श. ६ उ. १० केवली अनिन्द्रिय होते हैं १०७५ केवली अनिन्द्रिय होते हैं १२ प्रश्न केवली णं भंते ! आयाणेहिं जाणइ, पासइ ? १२ उत्तर-गोयमा णो ! इणटे समटे । १३ प्रश्न-से केणटेणं? १३ उत्तर-गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ, जाव-णिव्वुडे दंसणे केवलिस्स, से तेगडेणं । - गाहाः-'जीवाण य सुहं दुक्खं जीवे जीवइ तहेव भविया य, एगंतदुक्खं वेयण अत्तमायाय केवली ।' * सेवं भंते !, सेवं भंते ! त्ति ॥ छट्सए दसमो उद्देसो सम्मतो ॥ कठिन शब्दार्थ-आयाणेहि-इन्द्रियों द्वारा, मियं-मित-सीमित, अमियं-असीम, णिवुडे दंसणे-निवृत दर्शन । ___ भावार्य-१२ प्रश्न-हे भावन् ! क्या केवली भगवान् ! इन्द्रियों द्वारा जानते हैं और देखते हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? १३ उत्तर-हे गौतम ! केवली भगवान् पूर्व दिशा में मित (परिमित) को भी जानते हैं और अमित को भी जानते हैं, यावत् केवली का दर्शन निर्वत है । हे गौतम ! इसलिये ऐसा कहा जाता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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