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भगवती सूत्र - श. ६ उ. १० अन्ययूथिक और जीवों का सुख दुःख
वेदते हैं । हे भगवन् ! यह किस प्रकार हो सकता है ?
९ उत्तर - हे गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं और प्ररूपणा करते हैं, वह मिथ्या है। हे गौतम! में इस प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं कि कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तं दुःख रूप वेदना वेदते है और कदाचित् सुख को वेदते हैं। तथा कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्त सुख रूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् दुःख को वेदते हैं। कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, विमात्रा ( विविध प्रकार ) से वेदना वेदते हैं । अर्थात् कदाचित् सुख और कदाचित् दुःख वेदते हैं
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१० प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
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१० उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव, एकान्त दुःख रूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् सुख वेदते हैं । भवनपति, वागव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक ये एकान्त सुख रूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् दुःख वेदते हैं । पृथ्वीकाय से लेकर यावत् मनुष्य तक के जीव विमात्रा ( विविध प्रकार ) से वेदना वेदते हैं । अर्थात् कदाचित् सुख और कदाचित् दुःख वेदते हैं । इस कारण हे गौतम ! उपर्युक्त रूप से कहा गया है ।
विवेचन - जीव का प्रकरण होने से जीव के सम्बन्ध में अन्यतीर्थियों की वक्तव्यता कहीं जाती है । अन्यतीर्थियों की वक्तव्यता को मिथ्या बतला कर वास्तविकता की प्ररूपणा की है।
नैरयिक जीव, एकान्त असाता वेदना वेदते हैं, किन्तु तीर्थंकर भगवान् के जन्मदि के प्रसंग पर तथा देव प्रयोग द्वारा कदाचित् साता वेदना भी वेदते हैं । देव एकान्त साता वेदना वेदते हैं, किन्तु पारस्परिक आहनन में और प्रिय वस्तु के वियोगादि में असाता वेदना भी वेदते हैं ।
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पृथ्वीका से लेकर मनुष्य तक के जीव, कदाचित् ( किसी समय ) साता वेदना भी वेदते हैं और कदाचित् असाता वेदना भी वेदते हैं ।
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