Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 544
________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ ९ महद्रिक देव और विकुर्वणा परियाइता विउव्वहः एवं एएणं गमेणं जाव - एगवण्णं एगरूवं, एगवणं अगरूवं अणेगवणं एगरूवं अणेगवणं अणेगरूवं " " भंगो । ५ प्रश्न - देव णं भंते ! महिड्दीए, जाव - महाणुभागे बाहिरए पोगले अपरियाड़ता पभू कालगपोग्गलं णीलयपोग्गलत्ताए परिणा har, णीलगपोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ? " Jain Education International १०३१ ५ उत्तर - गोयमा ! णो णट्टे समट्टे । परियाइत्ता पभू । ६ प्रश्न - से णं भंते! किं इहगए पोग्गले० ? ६ उत्तर - तं चैव वरं - परिणामेइ ति भाणियव्वं एवं कालगपोग्गलं लोहियपोग्गलत्ताए, एवं कालगएणं जाव - सुक्किल्लं, एवं णीलएणं जाव - सुक्किल्लं, एवं लोहियपोग्गलं जाव सुविकल्लत्ताए, एवं हालिएणं जाव सुविकल्लं, तं एवं एयाए परिवाडीए गंध रसफास० कक्खडफासपोग्गलं मउय- फासपोग्गलत्ताए, एवं दो दो गरुयलहुय-सी उसिण- णिलुकखवण्णाई - सव्वत्थ परिणामे | आलावगा दो दो पोग्गले अपरियाइत्ता, परियाइत्ता । कठिन शब्दार्थ- परियाइत्ता - ग्रहण करके, लोहिय- लाल, सुक्किल्ल - श्वेत - शुक्ल, हालिद्द - पीला हलदी जैमा, कक्खडफास-कर्कश - कठोर स्पर्श, मउय-मृदु- कोमल, द्धिलक्ख - स्निग्ध रूक्ष । भावार्थ-२ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या महद्धिक यांवत् महानुभाग वाला देव, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले और एक आकार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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