Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 551
________________ १०६८ भगवर्ती सूत्र-शः ६ उ. १० दुःख सुख प्रदर्शनं अशक्य प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सब के दुःख या सुख को बोर गुठली प्रमाण, बाल (एक प्रकार का धान्य) प्रमाण, कलाय (मटर) प्रमाण, चावल प्रमाण, उडद प्रमाण, मूंग प्रमाण, यूका (जू) प्रमाण, लिक्षा (लोख) प्रमाण भी बाहर निकालकर नहीं दिखा सकता है । हे भगवन् ! यह बात किस प्रकार हो सकती है ? १ उत्तर-हे गौतम ! जो अन्यतीथिक उपरोक्त रूप से कहते हैं और प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं कि सम्पूर्ण लोक में रहे हुए सब जीवों के सुख या दुःख को कोई भी पुरुष उपर्युक्त रूप से किसी भी प्रमाण में बाहर निकाल कर नहीं दिखा सकता। २ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? २ उत्तर-हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप नाम का द्वीप एक लाख योजन का लम्बा और एक लाख योजन का चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख तोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोश, १२८ धनुष, १३३ अंगुल से कुछ अधिक है। कोई महद्धिक यावत् महानुभाग वाला देव, एक बडे विलेपन वाले गन्ध द्रव्य के डिब्बे को लेकर उघाडे और उघाड़ कर तीन चुटकी बजावे उतने समय में उपर्युक्त जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके वापिस शीघ्र आवे, तो हे गौतम ! उस देव की इस प्रकार की शीघ्र गति से गन्ध-पुद्गलों के स्पर्श से यह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप स्पृष्ट हुआ या नहीं ? . 'हां भगवन् ! वह स्पष्ट हो गया।' ___ 'हे गौतम ! कोई पुरुष उन गन्ध पुद्गलों को बोर की गुठली प्रमाण यावत् लिक्षा प्रमाण भी दिखलाने में समर्थ है ?' ___'हे भगवन् ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।' - 'हे गौतम । इसी प्रकार जीवों के सुख स को बाहर निकाल कर बतलाने में कोई भी व्यक्ति समर्थ नहीं है।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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