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भगवती सूत्र - श. ६ उ. १० जीव और प्राण
विवेचन-नौवें उद्देशक में अविशुद्ध लश्या वाले को ज्ञान का अभाव बतलाया गया है । इस दसवें उद्देशक में भी ज्ञान के अभाव को बतलाने के लिए अन्यतीथिकों की प्ररूपणा का वर्णन किया जाता है । ऊपर जो दृष्टान्त दिया गया है, उसका सार यह है कि गन्ध पुद्गल अति सूक्ष्म होने के कारण मूर्त होते हुए भी अमूर्त तुल्य हैं । इसलिए उन पुद्गलों को दिखाने में कोई समर्थ नहीं है । इसी प्रकार सभी जीवों के सुख दुःख को भी कोई बाहर निकाल कर दिखलाने में समर्थ नहीं है ।
जीव और प्राण .
३ प्रश्न-जीवे णं भंते ! जीवे, जीवे जीवे ?
३ उत्तर-गोयमा ! जीवे, ताव णियमा जीवे, जीवे वि, णियमा जीवे ।
४ प्रश्न-जीवे णं भंते ! णेरइए, णेरइए जीवे ?
४ उत्तर-गोयमा ! णेरइए ताव णियमा जीवे, जीवे पुण सिय णेरइए, सिय अणेरइए।
५ प्रश्न-जीव णं भंते ! असुरकुमारे, असुरकुमारे जीवे ? . ५ उत्तर-गोयमा ! असुरकुमारे ताव णियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे; एवं दंडओ भाणियव्यो, जाव-वेमाणियाणं ।
६ प्रश्न-जीवइ भंते ! जीवे, जीवे जीवइ ? ६ उत्तर-गोयम, ! जीवइ ताव णियमा जीवे, जीवे पुण सिय
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