Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 532
________________ . भगवती सूत्र-श. ६ उ. ८ देवलोकों के नीचे भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन ! क्या सौधर्म देवलोक और ईशान देवलोक के नीचे गृह या गृहापण हैं ? ९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् वहाँ गृह और गृहापण नहीं हैं। १० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सौधर्म देवलोक और ईशान देवलोक के नीचे महामेघ हैं ? १० उत्तर-हाँ, गौतम ! महामेघ हैं। उनको देव भी करते हैं, असुरकुमार भी करते हैं किन्तु नागकुमार नहीं करते हैं । इसी तरह स्तनित शब्द के लिए भी कहना चाहिए। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्म देवलोक और ईशान देवलोक के नीचे) बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय है ? ११ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । यह निषेध विग्रहगति समापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए जानना चाहिए। १२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा १२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वहाँ प्रामादि हैं ? १३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वहां चन्द्रामा और सूर्यामा है ? १४ उत्तर-हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के नीचे कहना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि वहां केवल देव ही करते हैं । इसी प्रकार ब्रह्मदेवलोक और ब्रह्मदेवलोक से ऊपर सब जगह देव करते हैं । सब जगह बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पति. काय के विषय में प्रश्न करना चाहिए। शेष सब पहले की तरह कहना चाहिए। गाथा का अर्थ इस प्रकार है-तमस्काय में और पांच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए । रत्नप्रभा आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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