Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 539
________________ १०५६ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ८ असंख्य द्वीप समुद्र इसी तरह दूसरे पदों का भी अर्थ जान लेना चाहिये। ११ "जातिनामगोत्रनियुक्त"-यह ग्यारहवां दण्डक है। जिन जीवों ने जाति नाम और गोत्र को नियुक्त किया है, वे 'जाति-नाम-गोत्र-नियुक्त' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिये । १२ “जातिनामगोत्र-नियुवतायु"-यह बारहवां दण्डक है। जिन जीवों ने जाति. नाम और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त किया है, वे "जाति-नाम-गोत्र-नियुक्तायु" कहलाते हैं । इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिये । . यहाँ पर जात्यादि नाम और गोत्र का तथा आयुष्य का भवोपग्रह में प्रधानता बतलाने के लिये यथायोग्य जीवों को विशेषित किया गया है। किन्ही किन्हीं प्रतियों में तो आठ दण्डक ही पाये जाते हैं । असंख्य द्वीप समुद्र १९ प्रश्न-लवणे णं भंते ! समुद्दे किं उसिओदए, पत्थडोदए, खुब्भियजले, अखुब्भियजले ? १९ उत्तर-गोयमा ! लवणे णं समुद्दे उसिओदए, णो पत्थडोदए, खुब्भियजले, णो अखुब्भियजले; एत्तो आढत्तं जहा जीवाभिगमे; जाव-से तेणगोयमा ! बाहिरिया णं दीव-समुद्दा पुण्णा, पुण्णप्पमाणा, वोलट्टमाणा, वोसट्टमाणा, समभरघडताए चिटुंति; संठाणओ एगविहिविहाणा, वित्थारओ अणेगविहिविहाणा; दुगुणा, दुगुणप्पमाणाओ, जाव-अस्सि तिरियलोए असंखेजा दीव-समुद्दा सयंभूरमणपजवसाणा पण्णत्ता समणाउसो !। २० प्रश्न-दीव-समुद्दा णं भंते ! केवइया णामधेनेहिं पण्णता ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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