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भगवती मूत्र-श. ६ उ. ८ आयध्य का बन्ध :
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२ जिन जीवों ने जाति नाम के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, वे जातिनाम:निधत्तायु' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिये । यह दूसरा दण्डक है । इसी प्रकार ये बारह दण्डक होते हैं ।
३ जातिनामनियुक्त-यह तीसरा दण्डक है । इसका अर्थ यह है कि जिन जीवों ने जातिनाम को नियुक्त (सम्बद्ध-निकाचित किया है अथवा घेदन प्रारंभ किया है, वे 'जातिनाम-नियुक्त' कहलाते हैं । इसी प्रकार दूसरे पदों का भी अर्थ जान लेना चाहिये।
४ जाति-नाम नियुक्त-आयु-यह चौथा दण्डक है। इसका अर्थ है कि जिन जीवों ने जातिनाम के साथ आयुष्य नियुक्त (सम्बद्ध-निकाचित) किया है अथवा उसका वेदन प्रारम्भ किया है, वे 'जातिनामनियुक्तायु' कहलाते हैं। इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिये।
५ 'जाति-गोत्र-निधत्त'-यह पांचवां दण्डक है । इसका अर्थ यह है कि जिन जीवों ने एकेन्द्रिय आदि रूपं जाति और गोत्र अर्थात् एकेन्द्रिय आदि जाति के योग्य नीचगोत्र आदि को निधत्त किया है, वे 'जातिगोत्रनिधत्त' कहलाते हैं । इसी प्रकार दूसरे पदों का भी अर्थ जान लेना चाहिये।
६ 'जातिगोत्रनिधत्तायु'- यह छठा दण्डक है । इसका अर्थ है जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयष्य को निधत्त किया है, वे 'जातिगोत्र-निधत्तायु' कहलाते हैं । इसी तरह अन्य पदों का भी अर्थ जानलेना चाहिये ।
७ 'जाति गोत्र नियुक्त'-यह सातवाँ दण्डक है। जिन जीवों ने जाति और गोत्र को नियुक्त किया है, वे 'जातिगोत्र-नियुक्त' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरे पदों का भी अर्थ जान लेना चाहिये।
८ “जातिगोत्र-नियुक्तायु"- यह आठवां दण्डक है। जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त कर लिया है, वे 'जातिगांत्रनियुक्तायु' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरे पदों का भी अर्थ जान लेना चाहिये।
९ "जातिनाम-गोत्र-निधत्त"-यह नौवां दण्डक है । जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र को निधत्त किया है, वे 'जातिनामगोत्रनिधत्त' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ भो जान लेना चाहिये .!
१० "जातिनामगोत्र-निधत्तायु"-यह दसवां दण्डक है । जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र के साथ आयुष्य को निधत किया है, वे 'जातिनामगोत्र-निधत्तायु' कहलाते हैं।
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