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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ८. आयुष्य का बन्ध
७ जाइगोयणिउत्ता, ८ जाइगोयणिउत्ताउया; ९ जाइणामगोय. णिहत्ता, १० जाइणामगोयणिहत्ताउया; ११ जाइणामगोयणिउत्ता, जीवा णं भंते ! किं १२ जाइणामगोयणिउत्ताउया; जाव-अणुभागः णामगोयणिउत्ताउया ?
____१८ उत्तर-गोयमा ! जाइणामगोयगिउत्ताउया वि, जाव. अणुभागणामगोयणिउत्ताउया वि; दंडओ जाव-वेमाणियाणं ।
___ कठिन शब्दार्थ--आउयबंधे--आयुष्य बन्ध, जाइणामणिहत्ताउए--एकेंद्रियादि जाति के साथ आयु का निधत्त-निषेकित करना-बांधना, अणुभागणामणिहत्ताउए-- अनुपाक-विपाक - फल भोग रूप कर्म को आयु के साथ बांधना।
___ भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! आयुष्य बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! आयुष्य बन्ध छह प्रकार का कहा गया है। यथा---१ जाति नाम-निधत्ताय. २ गतिनामनिधत्तायु, ३ स्थितिनामनिधत्तायु, . ४ अवगाहनानामनिधत्ताय, ५ प्रदेशनामनिधतायु और ६ अनुभागनामनिधताय । यावत् वैमानिकों तक दण्डक कहना चाहिए।
१६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, जाति-नाम-निधत हैं ? यावत् अनुभाग-नाम-निधत्त हैं ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए।
१७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, जातिनामनिधत्तायु हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्ताय हैं ?
- १७ उत्तर-हे गौतम ! जीव, जातिनामनिधत्तायु भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायु भी हैं। यह दण्डक, यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये। इस प्रकार ये बारह रण्डक हुए।
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