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________________ १०५२ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ८. आयुष्य का बन्ध ७ जाइगोयणिउत्ता, ८ जाइगोयणिउत्ताउया; ९ जाइणामगोय. णिहत्ता, १० जाइणामगोयणिहत्ताउया; ११ जाइणामगोयणिउत्ता, जीवा णं भंते ! किं १२ जाइणामगोयणिउत्ताउया; जाव-अणुभागः णामगोयणिउत्ताउया ? ____१८ उत्तर-गोयमा ! जाइणामगोयगिउत्ताउया वि, जाव. अणुभागणामगोयणिउत्ताउया वि; दंडओ जाव-वेमाणियाणं । ___ कठिन शब्दार्थ--आउयबंधे--आयुष्य बन्ध, जाइणामणिहत्ताउए--एकेंद्रियादि जाति के साथ आयु का निधत्त-निषेकित करना-बांधना, अणुभागणामणिहत्ताउए-- अनुपाक-विपाक - फल भोग रूप कर्म को आयु के साथ बांधना। ___ भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! आयुष्य बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? १५ उत्तर-हे गौतम ! आयुष्य बन्ध छह प्रकार का कहा गया है। यथा---१ जाति नाम-निधत्ताय. २ गतिनामनिधत्तायु, ३ स्थितिनामनिधत्तायु, . ४ अवगाहनानामनिधत्ताय, ५ प्रदेशनामनिधतायु और ६ अनुभागनामनिधताय । यावत् वैमानिकों तक दण्डक कहना चाहिए। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, जाति-नाम-निधत हैं ? यावत् अनुभाग-नाम-निधत्त हैं ? १६ उत्तर-हे गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। १७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, जातिनामनिधत्तायु हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्ताय हैं ? - १७ उत्तर-हे गौतम ! जीव, जातिनामनिधत्तायु भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायु भी हैं। यह दण्डक, यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये। इस प्रकार ये बारह रण्डक हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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