Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 522
________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ ७ उपमेय काल हुए, दो दिन के उगे हुए, तीन दिन के उगे हुए और अधिक से अधिक सात दिन . के उगे हुए करोडों बालाग्र ठूंस-ठूंस कर इस प्रकार भरा जाय कि उन बालानों को न अग्नि जला सके और न हवा उड़ा सके । एवं वे बालाग्र न दुर्गन्धित हों, न नष्ट हों और न सड़ सकें। इस तरह से भर दिया जाय। इसके बाद इस प्रकार बालाग्रों से ठसाठस भरे हुए उस पल्य में से सौ-सौ वर्ष में एक-एक बाला को निकाला जाय। इस क्रम से जितने काल में वह पल्य क्षीण हो, नीरज हो, निर्मल हो, निष्ठित हो, निर्लेप हो, अपहरित हो और विशुद्ध हो, उतने काल को एक 'पल्योपम काल' कहते हैं । सागरोपम के प्रमाण को बतलाने वाली गाथा का अर्थ इस प्रकार हैपत्योपम का जो प्रमाण ऊपर बतलाया गया है, वैसे दस कोटाकोटि पल्योपम का एक सागरोपम होता है । Jain Education International १०३९ एएणं सागरोवमपमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा तिष्णि सागरोवम कोडाकोडीओ कालो सुसमा, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुसमा, एगसागरोवमकोडाकोडी, बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुसमसुसमा; एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुसमा एकवीस वाससहस्सा इं कालो दुसमदुसमा, पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीस वाससहस्साई कालो दुसमदुसमा, एकवीसं वाससहस्साई, जाव - चत्तारि सागरो - कोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओमप्पिणी, दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, मागमको डाकोडीओ अवसप्पिणी, उस्मप्पिणी य । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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