Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 520
________________ भगवती सूत्र - ६ उ ७ उपमेय काल मे एगे देवकुरु- उत्तरकुरुगाणं मणुस्माणं वालग्गे; एवं हरिवास - रम्मग-हेमवय- एरण्णवयाणं, पुव्वविदेहाणं मणूसाणं अट्ठ वालग्गा माएगा लिक्खा, अड लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ट जूयाओ मे एगे जवमज्झे, अट्ट जवमज्झाओ मे एगे अंगुले, एएणं अंगुलपमाणे छ अंगुलाणि पाओ, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउड़ अंगुलाणि से एगे दंडे इ वा, धणू इवा, जूए इ वा णालिया ड़वा, अक्खे इवा, मुसले इ वा एएणं धणुष्पमाणेणं, दो धणुसहस्साई गाउयं चत्तारि गाउयाइं जोयणं: एएणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिउणं सवितेसं परिरक्षणं-ने णं एगाहिय - बेयाहिय तेयाहिया, उक्कोसं सत्तरत्तप्पढाणं संमद्रे, सणिचिए, भरिए वालग्गकोडीनं ते णं वालग्गे णो अग्गी दहेज्जा, णो वाउ हरेज्जाः णो कुत्थेना, णो परिविदुधंसेज्जा, णो पूइताए हब्वं आगच्छेजा; तओ णं वाससए, वाससए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावहणं काले से पल्ले खीणे, णिरए, णिम्मले गिट्टिए, पिल्लेवे, अवहडे, विसुधे भवइ से तं पलिओवमे । , Jain Education International 4 - १०३७ गाहा - 'एएसिं पल्ला कोडाकोडी हवेज दसगुणिया, तं सागरोवमस्स उ एक्कस्सम भवे परिमाणं । कठिन शब्दार्थ -- सत्थेण सुतिक्खण सुतीक्ष्ण शस्त्र से, पमाणाणं आई - प्रमाणों का For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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