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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ६ मारणान्तिक समुद्घात
कुमारावासंसि असुरकुमारत्ताए उववजित्तए ?
४ उत्तर-जहा गेरइया तहा भाणियव्वा, जाव-थणियकुमारा ।
कठिन शब्दार्थ-मारणंतियसमुग्धाएणं-मारणान्तिक समुद्घात- मृत्यु के समय होने वाली आत्मा की विशिष्ट-उग्र क्रिया, तत्थगए-वहां जाकर, समोहए-समवहत, आहारेज्जआहार करता है, परिणामेज्ज-परिणमाता है, बंधेज्जा-बांधता है, पडिनियत्तइ-पीछा फिरे। .
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! जो जीव, मारणान्तिक समुद्धात द्वारा समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रमा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से किसी एक नरकावास में नरयिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं क्या वह वहां जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बांधता है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, परिणमाता है, तथा शरीर बांधता है और कोई एक जीव वहां जाकर वापिस लौटता है, वापिस लौट कर यहां आता है, यहां आकर फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समवहत होता है । समवहत होकर इस.रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से किसी एक नरकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है । इसके बाद आहार ग्रहण करता है, परिणमाता है और शरीर बांधता है। इस प्रकार यावत् अधःसप्तम (तमस्तमः प्रभा) पृथ्वी तक कहना चाहिये ।
" ४ प्रश्न-हे भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक समद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर असुरकुमारों के चौसठ लाख आवासों में से किसी एक आवास में उत्पन्न होने के योग्य है, क्या वह जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है? उस आहार को परिणमाता है और शरीर बांधता है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार नरयिकों के विषयों में कहा, उसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी कहना चाहिये । यावत् स्तनितकुमारों तक इसी प्रकार कहना चाहिये।
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