Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 515
________________ १०३२ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ७ धान्य की स्थिति कठिन शब्दार्थ--कोट्टाउत्ताणं-कोठे में रखे हुए, पल्लाउत्ताणं-पल्य अर्थात् बांस के छबड़े में रखे हुए, मंचाउत्ताणं-मंच पर रखे हुए, मालाउत्ताणं-माल-मंजिल पर रखे हुए, उल्लित्ताणं-उल्लिप्त-लीपे हुए, लित्ताणं-लिप्त, पिहियाणं-ढके हुए, मुद्दियाणं-मुद्रित-छापकर बंद किये, लंछियाण-लांछित किये, तेण परं-उसके बाद, पमिलायइ - म्लान हो जाती. है, जोणीवच्छेदे-योनि व्युच्छेद-नष्ट-योनि, नवरं-विशेष में । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! शाली (कलमादि जाति सम्पन्न चावल), वीहि (सामान्य चावल), गोधूम (गेहूँ), यव (जौ) और यवयव (विशिष्ट प्रकार का जौ) इत्यादि धान्य कोठे में, बांस के छबडे में, मंच में या माल में डाल कर उनके मख गोबर आदि से उल्लिप्त हों, लिप्त हों, ढके हुए हों, मिट्टी आदि से मुख पर छांदण दिये हुए हों, लांछित-चिन्हित किये हुए हों, इस प्रकार सुरक्षित रखे हुए उपरोक्त धान्यों की योनि (अंकुरोत्पत्ति की हेतुभूत शक्ति) कितने समय तक रहती है ? १ उत्तर-हे गौतम ! उनको योनि जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन वर्ष तक कायम रहती है। उसके बाद उनकी योनि म्लान हो जाती है, विध्वंस को प्राप्त हो जाती है । इसके बाद वह बीज, अबीज हो जाता है । इसके बाद हे श्रमणायुष्मन् ! उस योनि का विच्छेद हो जाता है। . २ प्रश्न-हे भगवन् ! कलाय, मसूर, तिल, मूंग, उनद, बाल, कुलथ, आलिसंबक (एक प्रकार का चंवला), सतीण (तुअर), पलिमंथक (गोल चना अथवा काला चना) इत्यादि धान्य पूर्वोक्त रूप से कोठा आदि में रखे हुए हों, तो इन धान्यों की योनि कितने काल तक कायम रहती है ? २ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार शाली के लिये कहा, उसी प्रकार इन धान्यों के लिए भी कहना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहां उत्कृष्ट पांच वर्ष कहना चाहिए । शेष सारा वर्णन उसी तरह कहना चाहिए। __ ३ प्रश्न-हे भगवन् ! अलसी, कुसुंभ, कोद्रव, कांगणी, बरटी, राल, सण, सरसों, मूलक बीज, (एक जाति के शाक के बीज) आदि धान्यों की योनि कितने काल तक कायम रहती है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560