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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ७ गणनीय काल
एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहुत्तो अहोरत्तो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिष्णि उउए अयणे, दो अयणे संवच्चरे, पंचसवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाईं वाससयं, दस वाससयाई वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं चउरासी इं वाससयसहस्साणि से एगे पुवंगे, चउरासीइं पुवंगा सयसहस्साई से एगे पुव्वे; एवं तुडिअंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे; अववंगे, अववे, हूहूअंगे, हूहूए; उप्पलंगे, उप्पले; पउमंगे, पउमे, णलिणंगे, णलिणे; अत्थणि उरंगे, अत्थणिउरे; अउअंगे, अउए, पउअंगे, पउए य; णउअंगे, णउए य, चूलिअंगे, चूलिआ य, सीसपहेलिअंगे, सीसपहेलियाएताव ताव गणिए, एताव ताव गणियस्स विसए: तेण परं उवमिए ।
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कठिन शब्दार्थ - मुहुसल्स - मुहूर्त -
१-४८ मिनिट का समय, उसासद्धा उच्छ्वास समय, समुदयसमिति – समूहों का समागम, आवलिया - ब्राबलिका- असंख्यात समय की एक आवलिका होती है, हट्टुस्स - हृष्ट-पुष्ट-- स्वस्थ, अणवगल्ला - अनवकल्प्य - वृद्धावस्था की शिथिलता से रहित, निश्वकिटुस्स व्याधि रहित, उऊऋतु, गणिए -- मणित का विषय - गणनीय काल, उबलिए औपमिक-उपमा से जानने योग्य काल ।
भावार्थ - ४ प्रश्न -- हे भगवन् ! एक एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये हैं ?
४ उत्तर- है गौतम ! असंख्येय समय के समुदाय की समिति समागम से जितना काल होता है, उसे एक 'आलिका' कहते हैं । संख्पेय आवलिका का एक 'उच्छ्वास' होता है और संख्येय आवलिका का एक 'निःश्वास' होता है । हृष्ट पुष्ट तथा वृद्धावस्था और व्याधि से रहित प्राणी का एक उच्छ्वास और एक निःश्वास में दोनों मिलकर एक 'प्राण' कहलाता है । सात प्राण का
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