Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 491
________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ ५ तमस्काय समापन बादर पृथ्वी और बादर अग्नि हो सकती है । १४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारा रूप हैं ? १४ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु चन्द्र सूर्यादि तमस्काय के पास हैं । १००८ १५ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्र की प्रभा या सूर्य की प्रभा है ? १५ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु तमस्काय में stafar (अपनी आत्मा को दूषित करने वाली ) प्रभा है । १६ प्रश्न - हे भगवन् ! तमस्काय का वर्ण कैसा कहा गया है ? १६ उत्तर - हे गौतम ! तमस्काय का वर्ण काला, काली कान्तिवाला, मीर, रोंगटे खडे करने वाला, भीम ( भयंकर) उत्त्रासनक ( त्रास पैदा करने बाला) और परम कृष्ण हैं । उस तमस्काय को देखने के साथ ही कोई देव भी क्षोभ को प्राप्त हो जाता है । कदाचित् कोई देव, उस तमस्काय में प्रवेश करता है, तो शीघ्र और त्वरित गति से उसे पार कर जाता है।. विवेचन - तमस्काय में बादर पृथ्वी और बादर अग्नि नहीं होती, क्योंकि बादर पृथ्वी तो रत्नप्रभा आदि आठ पृथ्वियों में, पर्वतों में और विमान आदि में ही होती है, तथा बादर अग्नि मनुष्य क्षेत्र में ही होती है। इसलिए तमस्काय वाले प्रदेश में बादर पृथ्वी और बादर अग्नि नहीं होती । किन्तु जो बादर पृथ्वीकायिक जीव और बादर. अग्निकायिक जीव, विग्रह गति में होते हैं, वे ही वहां तमस्काय वाले प्रदेश में पाये जा सकते हैं । . तमस्का में चन्द्र सूर्यादि नहीं हैं, किन्तु तमस्काय के पास तो हैं । अतएव वहाँ उनकी प्रभा भी है और वह प्रभा तमस्काय में पड़ती भी है, किन्तु वह तमस्काय के परिणाम से परिणत हो जाने के कारण कादूषणिका है अर्थात् नहीं सरीखी है । तमस्काय काली है । उसका अवभास भी काला है । अतएव वह काली कान्ति वाली है तथा गम्भीर और भयानक होने से रोमहर्षक है । अर्थात् रोंगट खड़े कर देने वाली है, भीष्म होने से त्रास पैदा करने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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