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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ५ कृष्णराजि
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गमन में बाधक है, अतः इसको देवपरिघ' कहते हैं। १२ तमस्काय देवों के लिए भी क्षोभ का कारण है, इसलिए इसको 'देव प्रतिक्षोभ' कहते हैं । १३ तमस्काय अरुणोदक समुद्र के पानी का विकार है, इसलिए इसको 'अरुणोदक समुद्र' कहते हैं।
तमस्काय पानी, जीव और पुदगलों का परिणाम है। उसमें बांदर वाय, बादर वनस्पति और त्रस जीव उत्पन्न होते हैं। क्योंकि वायु और वनस्पति की उत्पत्ति अप्काय में संभवित है । इसके अतिरिक्त दूसरे जीवों की उत्पत्ति तमस्काय में संभवित नहीं है, क्योंकि दूसरे जीवों का वह स्वस्थान नहीं है।
कृष्णराजि
२० प्रश्न-कइ णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? २० उत्तर-गोयमा ! अट्ट कण्हराईओ पण्णताओ।
२१ प्रश्न-कहि णं भंते ! एयाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णताओ? .. ' - २१ उत्तर-गोयमा ! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं, हिडिं बंभलोए कप्पे रिटे विमाणपत्थडे-एत्थ णं अक्खाडगसमचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पुरथिमेणं दो, पचत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो; पुरत्थिमऽभंतरा कण्हराई दाहिण-बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा, दाहिणऽभंतरा कण्हराई पञ्चत्थिम बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा, पचत्थिमऽन्भतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराइं पुट्ठा, उत्तरमऽब्भतरा कण्हराई पुरथिमबाहिरं
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