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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ५ लोकान्तिक देव
४४ उत्तर-गोयमा ! अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
४५ प्रश्न-लोगंतियविमाणेहिंतो णं भंते ! केवइयं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते ?
४५ उत्तर-गोयमा ! असंखेजाइं जोयणसहस्साई अबाहाए लोगंते पण्णत्ते ।
* सेवं भंते ! मेवं भंते ! त्ति । *
॥ छट्ठसए पंचमो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शब्दार्थ- पइट्ठिया-प्रतिष्ठित, अबाहाए--अन्तर से ।
४३ प्रश्न-हे भगवन् ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर रहे हुए हैं ?
___४३ उत्तर-हे गौतम! लोकान्तिक विमान, वायुप्रतिष्ठित हैं अर्थात् वायु के आधार पर रहे हुए हैं। इस तरह जिस प्रकार विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों का संस्थान आदि का वर्णन जीवाभिगम सूत्र के देवोद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यहाँ भी कहनी चाहिए । यावत् हाँ, गौतम ! समी प्राग, मत, जीव और सत्त्व यहाँ अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु लोकान्तिक विमानों में देवी रूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं।
___४४ प्रश्न-हे भगवन् ! लोकान्तिक विमानों में कितने काल को स्थिति कही गई है ?
. ४४ उत्तर-हे गौतम ! लोकान्तिक विमानों में आठ सागरोपम की स्थिति कही गई है ?
४५ प्रश्न-हे भगवन् ! लोकान्तिक विमानों से लोकान्त कितना दूर है ?
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