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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ५ तमस्काय
९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या तमस्काय में उदार (बडे) मेष संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मच्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ?
९ उत्तर-हाँ, गौतम ! ऐसा है।
१० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या उसको देव करता है, असुर करता है, या नाग करता है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! देव भी करता है, असुर भी करता हैं और नाग भी करता है।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर स्तनित शम्ब (मेघगर्जना) है ? और क्या बादर विद्युत् (बिजली) है ?
११ उत्तर-हों, गौतम ! है।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या उसको देव करता है, असुर करता है, या माग करता है?
१२ उत्तर-हे गौतम ! उसे देव भी करता है, असुर भी करता है और नाग भी करता हैं।
विवेचन-तमस्काय में घर, दुकान, ग्राम, नगर, सन्निवेश आदि नहीं हैं, किंतु उसमें महामेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं अर्थात् तंज्जनक पुद्गलों के स्नेह की सम्पत्ति से सम्मूच्छित होते हैं, क्योंकि मेघ के पुद्गल मिलने से ही उनकी तदाकार रूप से उत्पत्ति होती है और फिर वर्षा होती है । यह वर्षा देव, असुरकुमार और नागकुमार करते हैं।
जो यह कहा गया है कि तमस्काय में बादर स्तनित (मेघ गजना) शब्द और 'बादर विद्युत्' होती है, सो 'बादर विद्युत्' शब्द से 'बादर तेजस्कायिक' महीं समझना चाहिए, क्योंकि इसी पाठ में आगे के सूत्र में उसका निषेध किया गया है । इसलिए यहां पर 'बादर विद्युत्' शब्द से देव के प्रभाव से उत्पन्न भास्वर (दीप्ति वाले) पुद्गलों का ग्रहण किया गया है, ऐसा समझना चाहिए। ___ १३ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तमुफ्काए बायरे पुढविकाए, बायरे अगणिकाए ?
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