Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 487
________________ : * ୧ ୦୪ समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र आवे, इस प्रकार की उत्कृष्ट और त्वरा वाली देवगति से चलता हुआ देव, यावत् एक दिन, दो दिन, तीन दिन चले यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले, तो कुछ तमस्काय का उल्लंघन करता है और कुछ तमस्काय को उल्लंघन नहीं कर सकता है । हे गौतम ! तमस्काय इतनी बडी है । विवेचन - नीचे तमस्काय का संस्थान शराव (मिट्टी के दीप के मूल ) के कारण है और ऊपर कूकड़े के पिञ्जरे के समान है । सम जलान्त के ऊपर १७२१ योजन तक तमस्काय, वलय संस्थानाकार है । तमस्काय के दो भेद हैं । संख्येय विस्तृत और असंख्येय विस्तृत | जलान्त से शुरू होकर संख्येय योजन तक जो तमस्काय है, वह संख्येय योजन विस्तृत है । और उस के बाद जो तमस्काय है वह असंख्येय योजन विस्तृत है । जो तमस्काय संयोजन विस्तृत है, उसने भी असंख्यात द्वीपों को घेर लिया है। इसलिए उसका परिक्षेप ( परिधि ) असंख्येय हजार योजन कहा गया है। बाह्य और आभ्यन्तर परिक्षेप का विभाग तो यहाँ नहीं कहा है, क्योंकि असंख्यातता की अपेक्षा दोनों परिक्षेपों की तुल्यता है । तमस्काय की महत्ता बतलाने के लिए देव का दृष्टान्त दिया गया है । गमन सामर्थ्य की प्रकर्षता बतलाने के लिए देव के लिए महद्धिक आदि विशेषण दिये गये हैं। ऐसा शक्तिशाली शीघ्रगति वाला देव, तीन चुटकी बजावे उतने समय में इस केवलकल्प अर्थात् सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र आवे, इस प्रकार की उत्कृष्ट और त्वरा वाली देवगति से चलता हुआ देव, एक दिन, दो दिन तीन दिन यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले तो संख्येय योजन विस्तृत तमस्काय के पार पहुंचता है, किन्तु असंख्येय योजन विस्तृत तमस्काय के पार नही पहुंच सकता है । ७ प्रश्न - अस्थि णं भंते! तमुक्काए गेहा इ वा, गेहावणा ह वा ? भगवती सूत्र - श. ६ उ ५ तमस्काय ७ उत्तर - णो इणट्टे समट्टे । ८ प्रश्न - अस्थि णं ते! तमुक्काए गामा इवा, जाव -सण्णि वेसा इ वा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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