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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ वेदक का अल्पबहुत्व
भव नहीं होने वाला है तथा जिन्होंने भवों का अन्त कर दिया है, उनको यहाँ 'अचरम' कहा गया है अर्थात् अभवी और सिद्ध को अचरम कहा गया है। इनमें से चरम जीव यथायोग्य आठ कर्म प्रकृतियों को भी बांधता है और चरम जीव की अयोगी अवस्था हो उस समय वह नहीं बांधता हैं । इसलिये यह कहा गया है कि चरम जीव, आठों कर्म प्रकृतियों को भजना से बांधता है। अचरम शब्द का अर्थ जब यह लिया जाय कि जिसका कभी चरम भव नहीं होगा-ऐसा अभव्य जीव, आठों कर्म प्रकृतियों को बांधता है और जब अचरम का अर्थ 'सिद्ध' लिया जाय, तो वह किसी भी कर्म प्रकृति को नहीं बांधता है । इसलिये यह कहा गया है कि 'अचरम जीव आठों कर्म प्रकृतियों को भजना से बांधता है।'
वेदक का अल्पबहुत्व
३३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! जीवाणं इत्थीवेयगाणं, पुरिसवेयगाणं, णपुंसगवेयगाणं, अवेयगाण य कयरे कयरहितो अप्पा वा० ४ ? - ३३ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेयगा, इत्थिवेयगा संखेनगुणा, अवेयगा अणंतगुणा, णपुंसगवेयगा अणंतगुणा। .. -एएसि सव्वेसि पयाणं अप्प-बहुगाई उच्चारेयव्वाई, जाव'सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अणंतगुणा ।
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति छ ॥ छट्ठसए तहओ उद्देसो सम्मत्तो॥
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