Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ १००० भगवती मूत्र-श. ६ उ. ५ तमस्काय - ३ उत्तर-गोयमा ! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेजे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए-एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए । सत्तरम-एकवीसे जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे, पवित्थरमाणे सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिदे चत्तारि वि कप्पे आवरित्ता णं उड्ढं पि य णं जाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणपत्थडं संपत्ते-एत्थ णं तमुक्काए णं सण्णिट्टिए । कठिन शब्दार्थ-- किमियं--क्या है ?, तमुक्काए--तमस्काय-अन्धकार का समूह, पच्चइ--कहा जाता है, अत्थेगइए--कितने ही-कुछ, पगासेइ-प्रकाशित होते हैं, समट्रिए--समुत्थित-उत्पन्न हुई, सणिट्ठिए-सनिष्ठित-समाप्त हुई, बीईवइत्ता-उल्लंघन करके, वेइयंताओ--वेदिका के अंत में, उड्ढं उप्पइत्ता-ऊचा उठता है, पवित्थरमाणे-- विस्तृत होता हुआ, आवरित्ता--आच्छादित करके। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! तमस्काय, क्या कहलाती है । क्या पृथ्वी तमस्काय कहलाती है, या पानी तमस्काय कहलाता है ? १ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती है, किन्तु पानी तमस्काय कहलाता है। २ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? २ उत्तर-हे गौतम ! कुछ पृथ्वीकाय ऐसी शुभ है जो देश को (कुछ भाग को) प्रकाशित करती है और कुछ पृथ्वीकाय ऐसी है जो देश (भाग) को प्रकाशित नहीं करती। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी तमस्काय कहलाता है। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! तमस्काय कहाँ से प्रारम्भ होती है और कहाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560