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ਮੁਕੇ
----.६ उ. ५ नमस्काय
समाप्त होती है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! जम्ब द्वीप के बाहर तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लंघन करने के बाद, अरुणवर नाम का द्वीप आता है । उस द्वीप की बाहर की वेदिका के अन्त में अरुणोदक समुद्र में ४२ हजार योजन जाने पर वहाँ के उपरितन जलान्त से एक प्रदेश की श्रेणी रूप तमस्काय उठती है। वहाँ से १७२१ योजन ऊँची जाने के बाद फिर तिरछी विस्तृत होती हुई सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार ओर माहेन्द्र-इन चार देवलोकों को आच्छादित करके ऊंची पांचवें ब्रह्मदेवलोक के रिष्ट विमान नामक पाथडे तक पहुंची है और वहीं तमस्काय का अन्त होता है।
विवेचन-चौथे उद्देशक में मप्रदेश जीव का कथन किया गया है । इस सम्बन्ध के अनुसार इस पांचवें उद्देशक में मप्रदेशात्मक तमस्काय का वर्णन किया जाता है । तमस्काय का अर्थ है-अन्धकार वाले पुद्गलों का समूह । यहाँ तमस्काय का कोई नियत स्कन्ध विवक्षित है । वह स्कन्ध पृथ्वीरज स्कन्ध या उदकरज स्कन्ध हो सकता है । इसलिये तमस्काय पृथ्वी रूप है, या पानी रूप है-यह प्रश्न किया गया है। जिसके उत्तर में कहा गया है कि तमस्काय पृथ्वी रूप नहीं है, किन्तु पानी रूप हैं । इसका कारण यह है कि कोई एक पृथ्वी पिण्ड शुभ अर्थात् भास्वर (दीप्निवाला) होता है । वह भास्वर रूप होने से मणि आदि की तरह अमुक क्षेत्र विभाग को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वी-पिण्ड, अभास्वर होने से अन्ध पत्यर की तरह दूसरे पृथ्वीपिण्ड को भी प्रकाशित नहीं कर सकता । सब प्रकार का पानी अप्रकाशक ही होता है और तमस्काय भी अप्रकाशक है । इसलिये अप्काय और तमस्काय का एक सरीखा स्वभाव होने से तमस्काय का परिणामी कारण अप्काय ही हो सकता है। अर्थात् नमस्काय, अप्काय का परिणाम ही है । यह तमस्काय एक प्रदेश श्रेणी रूप है। यहां 'एक प्रदेशी श्रेणी' का अर्थ-एक प्रदेशवाली श्रेगी ऐसा नहीं करना चाहिये, किन्तु 'समभित्ति रूप श्रेणी है' अर्थात् नीचे से लेकर ऊपर तक एक समान भींत (दिवाल) रूप श्रेणी है। अतः यहाँ ‘एक प्रदेश वाली श्रेणी'-ऐसा अर्थ करना ठीक नहीं है, क्योंकि तमस्काय स्तिबुकाकार जल जीव रूप है। उन जीवों के रहने के लिये असंख्यात आकाश प्रदेशों की आवश्यकता है । एक प्रदेश वाली श्रेणी का विस्तार बहुत थोड़ा होता है। उसमें वे जलजीव कैसे रह सकते हैं । इसलिये यहां एक प्रदेश वाली श्रेगी'-ऐसा अर्थ घटित नहीं होता। किन्तु 'समभित्ति' 'रूप श्रेणी' यह अर्थ ही घटित होता है।
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